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पउमकित्तिविरइउ
। १८, ५, १
अहाँ णर-केसरि गुण-गण-सायर सुणि माणुस-गइ कहमि गुणायर । माणुस-गइहि मणुय दुइ-भेयहि कहिय जिणागमें जिणवर-देवहि। भोग-कम्म-भूमिहि उप्पजहि धम्माहम्म-कलइँ अँजिज्जहि । भोग-भूमि-उप्पण्ण कहिजहिँ पच्छइ कम्म-भूमि णिसुणिज्जहि । तीस-भोग-भूमियउ पढिजहिँ तहि कप्पर्यंरु-रुक्ख णिसुणिज्जहि । ते दस-भेय-पयारहि भासिय पुण्ण-रूव-मुह-भूमि-णिवासिय । तहिं रवि-चंद-पसरु ण विदीसइ जण तरुवर-उज्जोएँ णिवसइ । के वि मज तरु देहि जहिच्छहि रयण-वत्थ संपाडहि इच्छहि । के वि करहिं उज्जोउ चउदिसु तूरु ण थक्का दिवसु वि रयणिसु । घत्ता- दस-भेय-पयारहि भूसिय भोग-भूमि वर तरुवरहि।
अट्ठारह-भूमि-विसालहि सोहइ चउदिसु वर-घरहि ॥ ५ ॥
भोग-भूमि उपजहिँ जे णर ते हउँ कहमि मुणिज्जहि णरवर । बहु-किय-सुकिय-पुष-कम्मंतर पर उप्पज्जहिं साक्ख णिरंतर। ते विलसंति भोग सहु विलयहि दस-अट्ठारह-भूमिय-णिलयहि । खास-चाहि तहि होइ ण काइ वि दिवि सुहु लहहिं मरणु ते जाइवि । पत्तहँ दाणु दिण्णु जे भावें
गयउ जम्मु जहँ सरल-सहावें । उज्जुअ-सील मणुव जे अणुदिणु पर-णि ठियउ परम्मुहु जहँ मणु । सच्छ-सहाव सरल हेत-इंदिय
साहिय परम-दोसह पंचेंदिय । हलुअ-कसाय पुरिस जे सुह-मण लेहि ण कासु वि केरा अवगुण । पत्ता- ते कॅम्महाँ सुकियहाँ फलेण भोग-भूमि उप्पजहि ।
कीडेवि] विविह विलासहि सुरहँ सुक्खु पुणु भुंजहि ॥ ६ ॥
समर-सहास-महारिउ भंजण कम्म-भूमि सुणि कहमि पहंजण ।
सत्तर सउ खेत्तइँ णिसुणिज्जइ कम्म-भूमि सौ पुणु वि कहिज्जइ । (५) १ क- मणूव । २ ख- विहि । ३ क में यह पंक्ति छूटी हुई है । ४ ख- यर । ५ क- पयारे । ६ ख- हि । ७ क- उजोवे । ८ ख- वत्थु । ९ ख- चउदिसु ।
(६) १ क- कय सुकिय पुन्च कम्मंत्तरे । २ क-णिरंतरे। ३ ख- भूमी णिल । ४ ख- तहो। ५ ख- जं । ६ ख- जहु । ७ क- धणु । ८ क, ख- परमुहु । ९ ख- जइ । १० क- दत्तेदिय । ११ क- दोसहि । १२ ख- कम्महु सुक्किय-फ। १३ क- कडे । १४ क- सोक्खु ।
(७) १ ख- भंजणु । २ ख- सुणि पयपंकयभसलपहंजणु । ३ क- सोहणवि कहि ।
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