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________________ -१७, ५, २] पासणाहचरिउ [१४९ तिहुअणहाँ असेसहाँ जं जि' सरणु तं राएँ दीसइ समवसरणु। गणहर सुर असुर गरिंद दिट्ठ विजाहर णरवर रिसि बइट। संभासिवि सयल अणुक्कमेण बइसिज्जइ थाणंतरि कमेण । णरणा, पणविवि देव-देउ पुच्छिउ तिसहि पुरिसाण भेउ । उप्पति केम कहि कुलयराहँ दस-भेय-कप्पवर-तरुवराह । चउवीस-परम-तित्थंकराहँ छक्खंड-पुहवि-परमेसराहँ। हलहर-णारायण-रिउ-णराहँ| इह चउ-विह-संघहाँ गणहराहँ । उच्चत्तु गोत्तु बलु आउ णाउ उप्पत्ति रज्जु कहि केमे थाउ । घत्ता- अवसप्पिणि-उवसप्पिणिहि छहि भेयहिं जं संठियउ । कहि काल-चक्कु परमेसर कह इँउ वहइ अणिट्ठियउ ॥ ३ ॥ परमेसरेण रविकित्ति वुत्तु पढमाणिोउ मुणि एय-चित्तु । देह-खेत्तहि भरहेरावरहि अवसप्पिणि-उवसप्पिणिउ होहि । तहि सुसमु सुसमु णामेण कालु अवयरिउ पहिल्लउ सुह-विसालु। तहि तिण्णि कोस देहहँ पमाणु आउसु वि तिणि पल्लइँ वियांणु । तहि कालि सयलु ऍउँ भरह-खेत्तु कप्पद्दमेहि छाइउ विचित्तु । रवि-चंदै करहि तहिँ पसरु णादि । कप्पदुमेहि णर विद्धि जाहिं। इह भोग-भूमि-सम-सरिसु आसि अणुहवइ जीउ बहु-सुहहँ रासि । तेहु कोडाकोडि चयारि माणु सायरहँ कहिउ जुवलहँ समाणु । धत्ता- आहरण-विहूँ सिय-देहइँ विलसइ मिहुणइँ विविह-मुहु । ण वि कोहु मोहु भउ आवइ ण वि जर मरण अालि तहु ॥ ४ ॥ 10 तहाँ कालहों पच्छइ सुसमु कालु उच्चत्तु आसि दुइ कोस देहु उप्पण्णु आसि बहु-मुह-विसालु । ण वि इट्ट विओउ ण कोहु मोहु । (३) १ क- में यह पद छूटा है। २ क- समोस । ३ ख- 'तरु । ४क- पुंच्छियउ । ५क- एम इह । ६ क, ख- च्छखंड । ७ क- संघहं । ८ ख- उच्चत्तू गोत्तू । ९ क- कम्म । १० ख- एउ। (४) १ ख- दस क्खें । २ क- देहइ, ख- देहहि । ३ ख- पमाणु । ४ ख- कालें । ५ क- इउ । ६ क- च्छायउ । ७ क- चंदु । ८ स्व- अण्णुवहहि जीव बहु जीवरासि । ९ क- तहि । १० ख · सायरहि गणिउ जुवलइ स । ११ ख- विस्य दें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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