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तारा- णिरु असेसु आंणहिउ गह णक्खत्त सूर ससि तारा तारायणहों उवरि ठिउँ दिणयरु पुणु णक्खत्त-पंति चल मणहर असुर- मंति पुणु गहु संच्छरु राहु के कीलइँ धु- संठिय चंदों एक पल्लु णिणिज्जइ सूरह पल्लु फुंडउ अक्खिज्जइ जीव उवरि सहु पल्लें तारयणों सग्गि सुह-सेवउ
पउमकित्तिविरइउ
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घत्ता - रवि चंदहो अणुलग्गउ गयणे वलैग्गड भमइ सयलु तारायणु । उवणु करंतर जहि फुरंत जण-मण-णयण- मुहावणु ॥ ७ ॥
विंतर देव 'अस्थि बहु-यहि किण्णर- गरुड - जक्ख- गंधव्त्रय वाणपेय किंपुरिस अणोरा के वि संवेल जाय वेलंधर सहि के वि अलिंदहॉ सिहरहिं सह के विरणयायर - दीवहि सह के वि सायर - आवत्तहि सहि के विकरहि करालहि सहि के वि इ-तैरुवर-गेहहि स के विधवलहरें - उज्जाणहि
धत्ता - बहु विंतर देव पएसहि एहि दस - वरिसें - सहास- चिराउस के
पुप्फ-परु जैह गयण परिहिउ । पंच-भेय तम- तिमिर - णिवारा । तासु वि उप्परेण पुणु ससहरु । बुह-मंगल वि कैमेण णिरंतर । तासु वि उपरि कहिउ सणिच्छरु । अवर उग्गह विविह परिट्टिय | सिहँ अणु वि लक्खु गणिज्जइ । सिहँ सह समग्गल दिज्जइ । सेस ठिदि" पल्लो ऍकलें ।
पहा अ-भाउ जीवेवउ ।
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[ १९६, ७, ३–
सह सहि ते व अयहि । भू-पिसाय- रक्ख बल-दपय । पण्णय देव सिद्ध सोंडीरा । अस्थि अणेय विविंतर दुद्धर । कुल - पव्त्रये -वण-कंदर-विवरहि । पंड- सिलहिणंदणवण - सीमहि । बहु-जल - भरियहि" सरह महंत हि । सहसवत्त- सररुहहिं विसालहि । हेममयहि तोरणहि सोहि । गयण-मग्गे उत्तंगें-विसाणहि । असेसह वसहि विविह-सुह-गव्विय । वि पल्लाउस गमहि कालु बल-दप्पिय ॥ ८ ॥
४ ख - यह । ५ क, ख - डिउ । ६ ख - कमेण निरंतरु । ७ ख य । ८ ख एकु । ९ ख मि । १० क- फुरउ । ११ ख- वरिसहु प° । १२ क, ख - द्विदि । १३ ख पल्लि येकल्ले । १४ ख- पलह | १५ ख - विल । १६ खउवअत्थवणु । १७ ख- मणहि ।
(८) १ ख- भेयहो । २ क- वसहे; इसके बाद जहां जहां 'हि' आया है, क प्रति में पांचवीं पंक्ति के पूर्वार्ध को छोड़, वहां वहां 'हे' लिखा है । ३ ख- अणेयहो । ४ ख- व्वथप्पिय । ५ ख- दप्पिय । ६ ख- सहेउ जाइ । ७ ख- अणेग । ८ कअचलेंद । ९ ख- पावय । १० ख- सहतहि । ११ ख- तरुअररामहि । १२ ख- ससो । १३ ख - 'हरुजाण । १४ खउत्तंगु । १५ क- सहसवरिसचिरा' ।
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