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________________ प्रस्तावना प्रतियों का परिचय पासणाह चरिउ की सम्पादित प्रति जिन प्राचीन प्रतियों पर से तैयार की गई है उनका परिचय नीचे दिया जा रहा है : . (१) क प्रति इस प्रति का कागज खाकी रंग का है और अपेक्षाकृत पतला है । इसमें कुल ९१ पत्र हैं । प्रत्येक पत्र ११ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है। पत्र के प्रत्येक पृष्ठ पर ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४३ अक्षर हैं । पृष्ठ में चारों ओर एक एक इंच का हाशिया छुटा हुआ है। इस हाशिये में यत्र तत्र पाठ सुधार किया गया है। इन पाठ संशोधनों तथा पत्रक्रमांक के अतिरिक्त हाशियों में टिप्पण आदि कुछ नहीं है । यह प्रति पूर्णतः सुरक्षित अवस्था में है। पत्रों के कोने आदि कहीं भी टूटे नहीं है । अक्षर सफाई और स्पष्टता से लिखे हुए हैं। प्रति का आरम्भ- “॥ छ । ओं नमो वीतरागाय" से तथा अन्त " इति पार्श्वनाथ चरित्रं समाप्तं ॥ ॥" से हुआ है । अन्तिम चार गाथाओं में कवि की प्रशस्ति है जिसका विवरण कवि-परिचय में दिया जाएगा । प्रति में न लिपिकार का नाम है और न लेखन काल का उल्लेख है। (२) ख प्रति-- इस प्रति का कागज कुछ उजले पीले रंग का है । इसके पत्र अपेक्षाकृत कुछ मोटे हैं जो दो पतले कागजों को चिपकाकर टिकाउ बनाए गए हैं। इसके पत्रों की संख्या ९४ है । उनमें से पत्र क्रमांक ६, १०, १५, १६, २९, ५८, ६२ तथा ६५ अप्राप्य हैं। प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४.६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पृष्ट के ऊपर तथा नीचे एक इंच का और आजू बाजू में पौन इंच का हाशिया छूटा हुआ है। साथ ही प्रत्येक पृष्ठ के बीच में ग्रंथि-सूत्र के लिये १३ इच का स्थान भी छोड़ा गया है । इस स्थान में आठ कोनों का एक तारक चिह्न लाल तथा काली स्याही में अंकित है । पृष्ठों पर पंक्तियों की संख्या समान नहीं है; उनकी संख्या ११ से १४ तक है। प्रत्येक पंक्ति में लगभग ४० अक्षर हैं । इस विषय में पत्र क्रमांक ८९ अन्य पत्रों की अपेक्षा भिन्न है। इस के एक पृष्ठ पर १९ पंक्तियां हैं जिनमें से प्रथम पंक्ति में अक्षरों की संख्या ४८ तथा अंतिम पंक्ति में ५५ है। इस प्रति के हाशिए में पत्र क्रमांक के अतिरिक्त उसके ऊपर तथा नीचे श्री शब्द लिखा है, कुछ स्थानों पर फोकी स्याही से पाठ में हुई त्रुटियों का सुधार किया गया है। क प्रति के समान यह प्रति भी प्रायः सुरक्षित स्थिति में है। केवल प्रथम तीन पत्रों के ऊपर के हाशिये तथा कुछ लिखित अंश टूट गये हैं। प्रति का प्रारंभ “॥ छी॥ ५॥ ओं नमो पार्श्वनाथाय नमः ॥" से हुआ । प्रति का अन्त प्रतिकार की प्रशस्ति से हुआ है जो इस प्रकार है: "श्लोक संख्या ३३२३ ग्रन्थमध्ये मिति लिखित । संवत् १४७३ वर्षे फालग्न वदि ९ बुद्धवासरे । महाराजाधिराज श्री वीरभान देव तस्य समय वास्तव्य पौलीजल दर्गात व्यापरंति । दि शो श्री मूलसिंहे बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे नंदि संधे कुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्री नकीर्तिदेव । तेषां पट्टे भट्टारक श्री प्रभाचन्द्रदेव तत्पट्टे भट्टारक श्रीपद्मनंदिदेव । तेषां पट्टवर्तमाने सम्यग्दृष्टि परम भव्य श्रावक देव शास्त्र गुरु आज्ञा प्रतिपालकाय सदा खकर्मनिरताय चतुर्विध दान पोषित चतुर्विध संघाय जैसवालकुलगगनोद्यतानदिवाकराय साधु दीटदेव तस्य भार्या हरिसिणि तयो तस्य पुत्र जीवदयाप्रतिपालक जिनधर्म सम्यग्दर्शनपोषक । सा देओ । सा पेमल । सा धानड । सा आसेदेउ । सा मोल्हट । सा भीम्बसी । सा पेभ्यू । अणुव्रतभरणाभूषितेण अहंदाज्ञाकारेण विजिताक्षेण । विदितसंसारसारेण ज्ञानावरणीय कर्मक्षयार्थ भव्यजन पठनाथ पार्श्वनाथ चरित्रं लिषापितं ग्रन्थ ॥ शुभमस्तु ।। लिषापितं आत्मकर्मक्षयार्थ कारणात् । सा पद्मसीह तस्य भार्या वीजू पुत्र गोपति कस्यार्थे लिषापितं ग्रन्थ । पार्श्वनाथ चरित्रलेषक । श्री वास्तव्य कायस्थीय श्री लोणिग । तस्य पुत्र रत्न । लिषितं लेख Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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