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२ क- कोइलय मं
पउमकित्तिविरइड
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कोइल-छय-मंडव-रइय-रम्मु मैदलय-तूर- वज्जंत-सदु कोइल-पारावय-महुर-घोसु पुर-यर-कुहिणि-चच्चय-पएसु वैर- विडव - चूव-मंजरि-सणाहु धत्ता - चूहों मंजरि लेविणु कीरें जणि दरिसाविय । गाइ वसंत - णरिंदो महि-यले पत्त भामिय ॥ ४ ॥
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घुम्मंत विलासिणि-दिण्ण-सम्मु । आणंद देतु जणि जहव चंदु | घरि घरि पर लोयहॉ देंतु तोसु । थिउ भुवणु भरिवि माहउ असेसु । अत्रयरिउ णाइ जगि रइहे णाहु ।
तहि अवसरि सिरि-रविकित्ति राउ महु दुहि पाव वर- कुमारि सा पासकुमारहो देहुँ अज्जु रणा व सुणेवि मंति पुज्जंतु मणोरहुँ एउ तुज्झु जं कण्णउ उत्तिम णरहों जाहि तं वयणु सुणेवि णरेसरेण कॉक्कावि णामें विमलबुद्धि सो पुच्छिउ अक्खि विवाह-मुद्धि महु कण्ण चिराउस होइ जेम धत्ता - पासकुमारहों मणहर घरि घरि जैर्णे वि पहण | होइ पहावर ते गणु बहु सुव- सोक्ख-हिण ॥ ५ ॥
मंतणउ करइ 'मंतिहि सहाउ । कल- गुणहि समुज्जल रूवधारि । तहँ बहु णाहि कज्जु । रोमंचिय सरह ऍउ भणंति । मंतण कवणु हु कवणु गुज्झु । पsिहॉय का भणु एउ णाहि । कैण्णउज्ज-र-परमेसरेण । जो सिउ महामंई थिरु सुबुद्धि । कहु लग्गु किं पिज होइ रिद्धि । जोवसिय गॅणिज्जहि लग्गु तेम |
तं वयणु सुविणु विमलबुद्धि एयारह इह णक्खत्त होंति । अणुराह - साइ-तिहि उत्तराहि * रोहिणि-हत्थिहि किज्जइ णमंति पुण्णुच्छवे पाणिग्गणे कालि सुहि यहि जे जहि तिण्णि वार । ३ क मध्य तू । ४ क- चश्चिय । ५ क - वरि ।
राह विवाहों कम सुद्धि ।
Rasहि मूल-मियसिर- महाहि । danger क्खि भांति । किज्जंतर मढ - देउल - विसौलि । गुरु- बुह-भिगु सेसा साविकार ।
(५) १ क- मंतिहो । २ क- मंतणइ । ३ क रह पउ । ४ क इह । ५ क हाइ ६ क- कणउज । ७ कगणिजहे । ८ क - यणे । ९ क- पहाणु । १० क- णिहाणु 1
(६) १ क- उत्तरेहि । २ क- रोहिणिहि हत्थि कि । ३ क रिक्खहे । ४ क- पुन्नच्छवे । ५ क विसाले । ६ क - आयहे ।
[ १३, ४, ५
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