________________
-१३, ४, ४]
[१०७
पासणाहचरिउ पइसंतहाँ रायहाँ तूर-सद्द
किय अवसर-बहु-विह जे सुहद्द । रविकित्ति-णरिंदें सहु कुमारु घर पइसइ पाविय साहुकारु । घत्ता- णरवर-लोयहिँ सहियउ विहवें पोस-णरिंदु । ___गउ रविकित्तिहे राउलु णावइ सैग्गि सुरिंदु ॥ २ ॥
10
तहि अवसरि राएँ पासणाहु परिहाविउ णिय-परियण-सणाहु । भुंजाविउ पुजिउ बहु-विहेण वत्थालंकार-विहूसणेणे । अवरे वि के वि गरवर विसेस रविकित्तें पुज्जिय ते असेस । तहि अवसरि आयउ जउण-मंति रविकित्ति-गरिंदहों पइ णमंति । पयडुज्जल-वयण-वियक्खणेहि पहु एम वुत्तु महुरक्खरेहि। अहाँ णरवर-केसरि कुल-पईव मुणु वयणु ऍक्कु गुण-रयण-दीव । गयवरहँ दंत जउ हयवराहँ
मणि-रैयण-समुज्जल विसहराहँ । मुंबई-यण सीलु "मियंकि जोण्ह पंचाणण-केसरि-मुंयहाँ सुण्ह । एँउ एयहँ सेयलहँ जह पहाणु तह णरवर लोयहाँ माणु जाणु । तं फेडिउ आहवें ज़सु पेयंडु . उपरेण तासु भणु कवणु दंडु । तुहुँ णरवइ धण्णउ पुण्णवंतु जसु घरि आयउ हयसेण-पुत्तुं । लइ जउणु मल्लि मं करहि खेउ णयवंतु वयणु तुहुँ करहि एउ। घत्ता- मंतिहे वयणु मुणेविणु जउणु णराहिउ मुक्कउ ।
पौयहि पडिवि कुमारहो गउ णिय-णयरहों हुक्कउ ।। ३ ॥
ऍत्यंतरि आउ वसंत-मासु
कामिणि-जण-मणहरु मय-णिवासु । उज्जाण-कुसुम-परिमल वहंतु
गंदण-सुगंध-रस-महमहंतु । अंदोलएहि मेइणि भरंतु
तंबोल-रंग-रस-छडउ दितु । । घणसार-कुसुम-मालइ-ससोहु
कय-कुसुम-पयरु मुणि-जणिय-मोहु । ११ ख- पास पास गरिदु । १२ ख- सग्गे ।
(३) १ ख- अवसरे । २ ख- परियणे । ३ ख- विहेहि । ४ क- 'कारि । ५ ख- णेहिं । ६ ख- आइय । ७ कणरेंदहो । ८ ख- सयवत्ते गंधुजउ हय । ९ ख- रयणु समजलु फलु विसौं । १० ख- सोहइ जणे सील । ११ क- ससंक । १२ क- सुवहो । १३ ख- सयलं । १४ ख- तहो । १५ क- लोयहे । १६ ख- पयंडू । १७ ख- कासु । १८ ख- प्रति का पत्र क्रमांक ५८ गुमा हुआ है अतः इस कडवक की ११ वीं पंक्ति से सातवें कडवक की दूसरी पंक्ति तक का पाठ केवल क प्रति के आधार पर संशोधित किया गया है । १९ क- पाइहि ।
(४) १ क- उजहण ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org