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मूल १५८
अनुवाद १०६
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संधि कड़वक कडवक का विषय
२२ नौ प्रति नारायणों के नाम । २३ रविकीर्ति द्वारा दीक्षा ग्रहण । जिनेन्द्र का विहार करते हुये शौरीपुर में आगमन,
वहां के राजा प्रभंजन का जिनेन्द्र के पास आगमन । २४ प्रभंजन द्वारा जिनेन्द्र की स्तुति । १८ १ चारों गतियों पर प्रकाश डालने के लिए प्रभंजन को जिनेन्द्र से विनति ।
नरक गति का वर्णन । २ जो नरक जाते हैं उनके दुष्कृत्य । ३ तिर्यग्गति के जीवों का विवरण । ४ तिर्यग्गति के दुःख । उसमें किस प्रकार के जीव उत्पन्न होते हैं, उनके कर्म । ५ मनुष्य गति-भोग भूमि और कर्मभूमि-भोग भूमि का वर्णन ।
भोग भूमि में उत्पन्न होने वालों के सत्कार्य । ७ अढाई द्वीप में १७० कर्म भूमियाँ । ८ दुष्कर्मों का फल भोगने के लिये कर्म भूमियों में उत्पत्ति ।
सुरगति का वर्णन । १० देवगति जिन कर्मों से प्राप्त होती है उनका विवरण । ११ प्रभंजन द्वारा दीक्षा ग्रहण, जिनेन्द्र का वाणारसी में आगमन । १२ जिनेन्द्र का हयसेन को उपदेश ।। १३ नागराज का आगमन । जिनेन्द्र द्वारा उसके प्रश्न का उत्तर । जिनेन्द्र द्वारा
प्रथम पूर्व जन्मका वर्णन । १४ जिनेन्द्र के दूसरे और तीसरे जन्मों का संक्षिप्त विवरण । १५ जिनेन्द्र के चौथे तथा पांचवें जन्मों का संक्षिप्त वर्णन । १६ जिनेन्द्र के छठवें तथा सातवें जन्मों का संक्षिप्त वर्णन । १७ जिनेन्द्र के आठवें जन्म का संक्षिप्त वर्णन । १८ जिनेन्द्र के नौवें तथा दसवें जन्मों का संक्षिप्त वर्णन । १९ हयसेन द्वारा दीक्षा ग्रहण । जिनेन्द्र का निर्वाण । २० ग्रन्थ-परिचय । २१ ग्रन्थ के पठन-पाठन से लाभ । २२ पद्मकीर्ति की गुरु परम्परा । कवि की प्रशस्ति ।
१६० १६० १६१ १६१ १६२ १६२ १६२ १६३ १६३ १६४ १६४ १६५
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