SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 184
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ – ६, १८, १२ ] अंग-पुत्र-तत्र - संजम करणइँ जीव- जोणि-कुल-आउ पमाणइँ afor जिणवरेण महि- सेवेहों कम्म-पडिणिसुविणरेसरु yasों देवि रज्जु परिओसें निम्गउ घरों राउ कणयप्पहु विवि पाय सुर-असुर णमंसहों Jain Education International धत्ता - परमेसर केवल - सामिय कलि-मल- पाव-असेसहर । संसार - महण्णव घोरहो माँ उत्तोरेंहि करहि कर ॥ १७ ॥ १८ अ अ सुहड वीर चकेसर लइ जिण - दिक्ख धीर अकलंकिय तं णिसृष्णुि महिहि पहाणउ मॅलिसियल पुहवि कणयप्पहु अवर वि णरवर महि-परिपाला मॅलिसियाहरणु सणेउरु दिक्ख लयं हि " वर - लोयहि जो ऍकुणिरंतरु रयणहि पासणाहचरिउ दुवई - अभर पर्देतु सयल-संसारहों सुरवर-सयल-बंदिओ । पभणइ एउ साहु परमेसरे केवलि जगि अणिदिओ | ७ ख इव्वय चर । ८ख लु । ९ ख १४ ख सद्-तूर । १५ ख इ । १६ ख (१८) १ क- र । २ क- हि मंदि ८, ९, १० क- हे । ११, १२ क- हे । 18 दंसण-लेस - महावय धरणइँ । सायर-खेत-दीव - गिरि-माणइँ । दंसण-रेयण - विहूसिय- देहेहों । गउ पैंरि लोयहि सहु चक्केसरु । मंगल- तूर -सद- णिग्घोसें । आय केवल हि" तिहुअण-पहु । सग्ग-मत्त-पायाल - पेसेंससा । .१२ स्वर - केसरि महि- परमेसर । वय -संजम चारित्तालंकिय । जिणवर - चलणहि पणविउ राणउ । fra for - दिक्खहि कणय-सम-प्पहु । थिय जिण - दिक्खर्हि गुणहि विसाला । जिगर - दिक्खहि थिउ अंतेउरु । छंडिय मउडाहरण अणेयहि" । मंडिय सयल पुर्वि आहरणहि । पत्ता - मणि- रयणहि विविह-पयारहि सयले वि महि-यल मंडियउ । णं माणस सरवरुप महि सोहइ सयलु अखंडियउ ॥ १८ ॥ ॥ संधिः ॥ ६ ॥ [ ५१ णाहहो । १० ख भाव । ११ ख- भावहो । १२ ख- इ । १३ ख- पुर । कहि । १७ ख- णमंसहे । १८ खरि । १९ ख - रिहि । २० - घर | । ३ खराव ४ ख आलं । ५ ख - 'वि । ६ क हे । ७ क है । १३ क- 'हे । १४ क वे । १५ ख - 'लु महीं । For Private Personal Use Only 5 10 5 10 www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy