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संधि-४
मुणि- उसे मयगल फेडिवि कलि-मल-दोसु । गउ सहसार-विमाणहोतं जण सुणहुं पसु ॥ [ ध्रुवक
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गएँ मुणिवरे करि तत्र - नियम- लग्गु उवास तोडइ मणि अणंगु मेहि पार गंदु गय-जूहें जो दरमलिउ मग्गु मलिय गय चलहि तिणइँ जाइँ जं गयहँ खुरम्गें जाउ समलु फासून वणि तित्थु करंतु वारि उ सलिल णिमित्रों सरिहि जूहु पाणिउ पिएइ इंछइ गइंदु जूहाहि पाणिउ पियर जाम
मिलिवि वर - करिणि तगउ संगु । सोस णाणा-विह तवेग अंगु । मसाविण जोवर करिणि-बिंदु | तं जाण इंछ हँ भंगु । जूहाहि महि-लि असइ ताइँ । तं पियs गयाहिउ सरिहि सलिल । तउ तविउ वरिस तें तहि चयारि । अग्ग करेवि करिहिँ समूहु । पल्लैट्टि परीवा गरुव-बिंदु | पलकदमि खुत्तु ताम ।
घत्ता - जलि णीसरिवि ण सक्कइ वय उववासंहि खीणउ । गुणसुमरंतु मुणिंदहो थिउ कदमि जलि लीणउ ॥ १ ॥
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अप्पाणउ भाव भावणाहि हउँको विगाहि महु को विण वि साहारु ण ण वि णविय धरा संसार असारइ दुह-विसालु र- तिरियमणुव-देवत्तणेहि दुहु विसरि आसि परव्वसेहि Marathi aणाहि हउँ जिण-धम्म-नियम-गुण-सील-जुत्तु वइराइ गिरंतरु हत्थि जाम
उ बारह- यहि पेहेणाहि । जिधम्भु मुवि गइ गाँहि कुवि । महु सरणु जिणेसरु देउ परा । मइँ सहि अनंत आसि कालु । दालिह- दुक्ख- रोगत्तणे हि । विस-इंदिय-मुह-रस-लालसेहि" । सच्छंद - पिंडु तवचरण करउँ । किण विसहिमि एवहि दुक्खु ऐंतु । जलि अच्छइ रिउ संपत्तु ताम ।
आइयउ । जहाँ मज्झि गउ पेक्खिवि रोस परव्वसु धाइयउ ॥ २ ॥
घत्ता - कुकुडु सप्पु महोरिउ पुत्र विरुद्धउ
(१) १ क- हो । २ क- य । ३ क यं । ४ क हे । ५ क- हे । ६ क- 'हि । ७ क ल । ८ क रिं । ९क- 'हे ।
(२) १ क ह । २ क- मं । ३ क हे । ४, ५ क - °लि । ६ क- 'हे । ७ क- कउ । ८ क है ।
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