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________________ १२४ प्रस्तावना (३) एविणु- देविण १. १०. १२, विहसेविणु १. १४. २ हक्केविणु १. १८. ६, सुणेविणु २. ५. १, गिण्हेविणु ८. २१.१०।। (४) एप्पिणु–णवेप्पिणु १. १७.६, पणवेप्पिणु २. ३. ७, विहसेप्पिणु २.६.१, चवेप्पिणु ३. ९. ५, णिसुणेप्पिणु ६. १८. ५। (५) इ-लइ २.१६. ६, पल्लटि ४.१.११ । (६) अवि-जोयवि १४.११. १२ (७) ऊण- गहीऊण ११. ९. २२ (८) अ-मई उत्तारहि करहिं कर-यहां कर में अ का उपयोग पूर्वकालिक कृदन्त बनाने के लिए किया गया है। उक्त सात प्रत्ययों में से प्रथम दो का उपयोग अन्य की अपेक्षा बहत अधिक किया गया है। (इ) विध्यर्थ कृदन्त-इसके लिए धातु में एवउँ जोड़ा जाता है । एवउँ जब कब एव्वउँ या इन्वउँ में भी परिवर्तित कर दिया गया है। (१) एव्वउँ-करेव्वउँ २. १०. ८, ४. ५. १८, १४. ७. १, मारेव्वउँ १४. २७. ११, पालेव्वउँ ३. १३. ८, सेवेव्वउँ १३. २०.२। (२) इव्व-मुंजिव्वउँ २.१०. ९, पयडिव्वउँ १. ३.८। (३) एवउँ–णेवउँ ३. १३. ११, मिल्लेवउँ १. ४. ८ बोल्लेवउँ १. १४. ११ । । (४) पुज्ज (पूज्य) ८. १५. ७, ११. ९. १२, गण्ण (गण्य) ९. १०. ७, संभाविणिज (संभावनीय) १४. ६. २ एवं लिज्जा (गृहया ) ११. ९. १२ भी विध्यर्थ कृदन्त हैं जो संस्कृत प्राकृत से संधि के लिए गए हैं। (ई) क्रियार्थक कृदन्त-धातु से यह कृदन्त बनाने के लिए अणहँ, अणहि तथा इवि प्रत्ययों का उपयोग हुआ है यथा (१) अणहँ-कहणहँ ६. १५.७, णासणहँ १४. १५. ८ जिंदणहँ २. ११. २, चूरणहँ १४. २८. ४, देणहँ १४. २८. ११ । (२) अणहिं- तवणहिं १. १९. २, ३. १६.५, पाणहि २. ५. ३, मेल्लणहि १५. ५. ९ (३) इवि-भणिवि ५.११.८, करिवि ९.८. ९।। (१०) संयुक्त क्रिया : आसि क्रिया स्वतंत्र रूप से तथा भूतकालिक कृदन्त के साथ भी प्रयुक्त की गई है। भूतकालिक कृदन्त के साथ वह वर्तमान या परोक्ष भूत को व्यक्त करती है। यथा (१) णिहालिउ आसि ( देखा गया है) १.१४. ८. (२) णिवारिउ आसि (रोका गया था) ३.१५.१०. (३) उप्पण्णु असि ( उत्पन्न हुआ था) २.११. ३, १७. ५.१, (४) आदण्णउ आसि ( दुखी था) २. १३. १. अव्यय ग्रन्थ में जिन अव्ययों का उपयोग किया गया है उनमें से रे, अरे, णावइ, णहि, णाहि, इय, णवर का निर्देश पूर्व में किया ही जा चुका है। क्रिया से प्राप्त अव्यय इविं का एवि:पूर्वकालिक तथा अणहँ, अणहि आदि तुमुनान्त कृदन्तों के प्रत्ययों से प्राप्त हुआ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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