SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना स्वयंभू ने इन द्विपदियों के लक्षण उसी छन्द में दिये हैं फलतः इनके अलग से उदाहरण देने की आवश्यकता नहीं हुई । हेमचन्द्र ने इनके अलग से उदाहरण दिए हैं। मात्राछन्दो की तुलना करने पर यह ज्ञात हुआ कि उक्त षट्पदियों की मात्रागण व्यवस्था इन द्विपदियों के उदाहरणों में पूर्णतः लागू होती है । स्वयंभू ने तो द्विपदियों की पंक्ति के पहिले तथा दूसरे भाग के अन्त में यमक भी प्रयुक्त किया है अतः यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि पा. च. का जो षट्पदी छन्द हैं वे इन दो छन्दशास्त्रियों के अनुसार द्विपदी कही जा सकती हैं। साथ में यह भी स्पष्ट है कि इन दोनों द्वारा वर्णित ये द्विपदियां यथार्थ में षट्पदियां हैं। संकीर्ण षट्पदियों के निम्न प्रकार पा. च. में उपलब्ध हैं- (i) वे जिनके पहिले पाद में १०, चौथे पाद में १२ तथा तीसरे और छठवें में १२ x २ मात्राएं हैं। फलतः प्रथम पंक्ति में ३० (१०+८-१२) तथा द्वितीय पंक्ति में ३२ (१२+८+१२) मात्राएं हैं। पहिली संधि के २ रे तथा चौदहवीं संधि के २८ वें कडवक के पत्ते इस प्रकार के हैं। (i) वे जिनके पहिले पाद में १०, चौथे में १४ तथा तीसरे और छठवें में १३ x २ मात्राएं हैं। इससे प्रथम पंक्ति में ३१ (१०+८+१३) तथा दूसरी पंक्ति में ३४ (१४+८+१२) मात्राएं हैं। आठवीं संधि के १ ले कडवक का पत्ता इस प्रकार का है। ( iii) वह जिसके पहिले और चौथे पाद में १२x२ तीसरे पाद में भी १२ पर छठवें में १० फलतः प्रथम पंक्ति में ३२ (१२+८+१२) तथा द्वितीय पंक्ति में ३० (१२+८+१०) मात्राएं हैं। . आठवीं संधि के १८ वें कडवक का पत्ता इस प्रकार का है। (iv ) वह जिसके पहिले पाद में १२, चौथे में १० तथा तीसरे और छठवें में १२x२ फलतः प्रथम पंक्ति में ३२ (१२+८+१२) तथा द्वितीय पंक्ति में ३० (१०+८+१२) मात्राएं हैं । चौदहवी संधि के ६ वें कडवक का पत्ता इस प्रकार का है। (v) वे जिनके पहिले पाद में १२, चौथे पाद में १४ तथा तीसरे और छठवें पाद में १२x२ फलतः प्रथम पंक्ति ३२ (१२+८+१२) तथा द्वितीय पंक्ति में ३४ (१४+८+१२) मात्राएं हैं। आठवी संधि के १५, १९, बारहवीं संधि के ५, ८, पंद्रहवीं संधि का १ ला तथा सोलहवीं संधि के १२ वें कडवकों के पत्ते इस प्रकार के हैं। . (vi) वह जिसके पहिले तथा चौथे पाद में १२x२, तीसरे में १३ तथा छठवें में ११ फलतः प्रथम पंक्ति में ३३ (१२+८+१३) तथा द्वितीय पंक्ति में ३१ (१२+८+११) मात्राएं हैं । पहिली संधि के १ ले कडवक का घत्ता इस प्रकार का है। (vii) वे जिनके पहिले पाद में १२, चौथे में १४, तीसरे में १३ तथा छठवें में १२, फलतः प्रथम पंक्ति में ३३ (१२+८+१३) तथा दूसरी में ३४ (१४+८+१२) मात्राएं हैं । पहिली संधि के १८ वें तथा चौदहवीं संधि के ७ वे कडवकों के पत्ते इस प्रकार के हैं। (viii) वे जिनके पहिले पाद में १२, चौथे में १४ तथा तीसरे और छठवें में १३ ४ २ मात्राएं हैं जिससे प्रथम पंक्ति में ३३ (१२+८+१३) तथा द्वितीय पंक्ति में ३५ (१४+८+१३) मात्राएं हैं। आठवीं संधि के २०वें कडवक का पत्ता, बारहवीं संधि का ध्रुवक तथा ११वें कडवक का पता इस प्रकार के हैं। (ix) वे जिनके पहिले पाद में १४, चौथे में १२ तथा तीसरे और छठवें में १२ x २ अतः पहिली पंक्ति में ३४ (१४+८+१२) तथा दूसरी पंक्ति में ३२ (१२+८+१२) मात्राएं हैं। पहिली संधि का ध्रुवक तथा २२ वें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy