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________________ छंद चर्चा । ९१ एक षण्मात्रागण, एक चतुर्मात्रागण तथा एक त्रिमात्रागण से या दो पंचमात्रागणों और एक त्रिमात्रागण से की गई है तथा समपादों में मात्रागणों की व्यवस्था प्रथमवर्ग के छंद के समपादों के समान ही है। विषमपाद-६+४+३ या ५+५+३। समपाद -६ UU+ - U या ४+४ - U । स्वयंभू (स्व. छ. ६ - १००) तथा हेमचन्द्र (छ. शा. ४२अ १) ने इस छंद का नाम कुसुमाकुल मधुकर दिया है। छंदकोश (२१) कविदर्पण (२ - १४) तथा प्रा. पै. (१.७८) में इसे दोहा नाम दिया गया है। कविदर्पण के टीकाकारने इस छंद के समपादों का अन्त एक गुरु लघु से किए जाने की एक परम्परा का उल्लेख किया है । पा. च. के इस वर्ग के समस्त छंदों का अन्त इस परम्परा के ही अनुसार किया गया है । चौथी, सातवीं तथा तेरहवीं संधियों के ध्रवक तथा तीसरी संधि के ९, पांचवी संधि के ५, और तेरहवीं संधि के ५, ८, तथा १६ वें कडवकों के पत्ते इस छंद में है। (iii ) जिनके विषमपादों में १२ तथा समपादो में १३ मात्राएं हैं उनके विषम पादों में मात्रागों की व्यवस्था एक षण्मात्रगण, एक चतुर्मात्रागण तथा एक द्विमात्रा गण या दो पंचमात्रागणों से और एक द्विमात्रा गण से हुइ है । अंतिम गण सर्वत्र दो लघुओं द्वारा व्यक्त किया गया है । इनके समपादों में वह व्यवस्था एक षण्मात्रागण, एक चतुर्मात्रा गण तथा एक त्रिमात्रागण या दो चतुर्मात्रागणों तथा एक पंचमात्रात्रण द्वारा की गइ हैं विषमपाद-६+४+UU या ५+५+ ७=११ समपाद-६+४+३ या ४+४+५= १३ स्वयंभू (स्व. छं ६.१११) तथा हेमचन्द्र (छ. शा. ४०अ. १७) ने इस छंद का नाम कामिनीहास दिया है। चौथी संधि के २, ४, तथा पांचवीं संधि के ३ रे कडवकों के पत्ते इस छंद में हैं। (iv ) जिनके विषम पादों में १३ तथा समपादों में १२ मात्राएं हैं उनके विषम पादों में मात्रागण व्यवस्था एक षण्मात्रागण, एक चतुर्मात्रागण तथा एक त्रिमात्रागग से या तीन चतुर्मात्रागगों ओर एक लघु से हुइ है । जो त्रिमात्रागण है वह प्रायः तीन लघुओं से व्यक्त हुआ है और बहुत कम स्थानों पर एक लघु गुरु से । इनके समपादो में वह व्यवस्था एक षण्मात्रागण, एक चतुमात्रागग तथा एक द्विमात्रागग या तीन चतुर्मात्रागगों से हुई है। इन पादों की अंतिम-चार मात्राएं एक भगण से व्यक्त की गई हैं। अपवाद केवल तीसरी संधि के १ले कडवक का पत्ता है जहां वे दो गुरुओं (--)द्वारा व्यक्त हुई हे विषमपाद-६+४+UUU या (U-)४+४+४+ - १३ ' समपाद-६+४+२ या ४+४+ - U = १२ स्वयंभू-(४-१०६ -११३) तथा हेमचन्द्र (छं. शा. ४२अ ७) ने इसका नाम उपदोहक दिया है। दूसरी संधि के, २, १४, तीसरी संधि का ध्रुवक तथा १, १५, १६; चौथी संधि के १, ११, पाँचवीं संधि के १, छठवीं संधि के ४, तेरहवीं संधि के ३, ४, ८, २० तथा सत्रहवीं संधि के २० वें कडवकों के पत्ते इस छंद में हैं। (v) जिनके विषमपादों में १४ तथा समपादों में ११ मात्राएं हैं, उनके विषम पादों में मात्रागणों की व्यवस्था तीन चतुर्मात्रागणों और एक द्विमात्रागण से की गई है । अंतिम गण दो लघुओं से व्यक्त हुआ है। इनके समपादों के मात्रागणों की व्यवस्था दूसरे वर्ग के छंद (दोहा) के समपादों के समान है विषमपाद-४+४+४+UU = १४. समपाद--६+U + - U या ४+४+ - U = ११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001444
Book TitlePasanahchariyam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmkirti
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1965
Total Pages538
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size12 MB
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