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## Chapter Eight
- **Rasa Karma:** The karma that causes a difference in taste. There are five types:
- Tikta Karma (Bitter)
- Katu Karma (Pungent)
- Kashaya Karma (Astringent)
- Amla Karma (Sour)
- Madhura Karma (Sweet)
- **Gandha Karma:** The karma that causes a difference in smell. There are two types:
- Surabhi Gandha Karma (Pleasant Smell)
- Asurbhi Gandha Karma (Unpleasant Smell)
- **Varna Karma:** The karma that causes a difference in color. There are five types:
- Krishna Varna Karma (Black)
- Nila Varna Karma (Blue)
- Rakta Varna Karma (Red)
- Haridra Varna Karma (Yellow)
- Shukla Varna Karma (White)
- **Anupurvya Karma:** The karma that causes the continuation of the previous body's form. There are four types:
- Naraka Gati Prayogya Anupurvya Karma (Karma leading to hell)
- Tiryanch Gati Prayogya Anupurvya Karma (Karma leading to animal realm)
- Manushya Gati Prayogya Anupurvya Karma (Karma leading to human realm)
- Deva Gati Prayogya Anupurvya Karma (Karma leading to heavenly realm)
- **Agurulaghu Karma:** The karma that causes the body to neither fall down due to heaviness nor rise up due to lightness.
- **Upadhata Karma:** The karma that causes harm due to self-inflicted bondage, falling into a desert, etc.
- **Paradhata Karma:** The karma that causes harm due to external factors like weapons.
- **Atap Karma:** The karma that causes heat in the body. It is present in the sun.
- **Udyota Karma:** The karma that causes light in the body. It is present in the moon, stars, etc.
- **Uchchvas Karma:** The karma that causes breathing.
- **Vihayoga Gati Karma:** The karma that causes movement in the sky. There are two types:
- Prashsta Vihayoga Gati Karma (Good movement)
- Aprashsta Vihayoga Gati Karma (Bad movement)
- **Pratyek Sharira Karma:** The karma that creates a body for the enjoyment of a single soul.
- **Sadharana Sharira Karma:** The karma that creates a body for the enjoyment of many souls.
- **Tras Karma:** The karma that causes birth in the realm of beings with two or more senses.
- **Sthavar Karma:** The karma that causes birth in the realm of beings with one sense.
- **Sparsha Karma:** The karma that causes the development of the sense of touch. There are eight types:
- Karkasha Karma (Rough)
- Madhu Karma (Soft)
- Guru Karma (Heavy)
- Laghu Karma (Light)
- Snigdha Karma (Oily)
- Rooksha Karma (Dry)
- Shita Karma (Cold)
- Ushna Karma (Hot)
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-81118755] अष्टमोऽध्यायः
[305 कर्कशनाम मदुनाम गुरुनाम लघुनाम स्निग्धनाम रूक्षनाम शीतनाम उष्णनाम चेति । यन्निमित्तो रसविकल्पस्तद्रसनाम । तत्पञ्चविधम्-तिक्तनाम कटुकनाम कषायनाम आम्लनाम मधुरनाम चेति । यदुदयप्रभवो गन्धस्तद्गन्धनाम । तद्विविधम्-सुरभिगन्धनाम असुरभिगन्धनाम चेति । यद्धेतुको वर्णविभागस्तद्वर्णनाम । तत्पंचविधम्-कृष्णवर्णनाम नीलवर्णनाम रक्तवर्णनाम हारिद्र वर्णनाम शुक्लवर्णनाम चेति । पूर्वशरीराकाराविनाशो यस्योदयाद् भवति तदानुपूर्व्यनाम। तच्चतुर्विधम् -नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्यनाम मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपर्व्यनाम देवगतिप्रायोग्यानपर्व्यनाम चेति । यस्योदयादयःपिण्डवद गुरुत्वान्नाधः पतति न चार्क तूलवल्लघुत्वादूवं गच्छति तदगुरुलघुनाम । यस्योदयात्स्वयंकृतोद्बन्धन मरुप्रपतनादिनिमित्त उपघातो भवति तदुपघातनाम । यन्निमित्तः परशस्त्रादेाघातस्तत्परघातनाम । यदुदयान्निर्वृत्तमातपनं तदातपनाम । तदादित्ये वर्तते। यन्निमित्तमुद्योतनं तदुद्योतनाम । तच्चन्द्रखद्योतादिषु वर्तते । यद्धतुरुच्छवासस्तदुच्छ्वासनाम । विहाय आकाशम् । तत्र गतिनिर्वर्तकं तद्विहायोगतिनाम। तद्विविधम-प्रशस्ताप्रशस्तभेदात् । शरीरनामकमोदयान्निवत्यमानं शरीरमेकात्मोपभोगकारणं यतो भवति तत्प्रत्येकशरीरनाम। बहनामात्मनामुपभोगहेतुत्वेन साधारणं शरीरं यतो भवति तत्साधारणशरीरनाम । यदुदयाद् द्वीन्द्रियादिषु जन्म तत्त्रसनाम् । यन्निमित्त एकेन्द्रियेषु प्रादुर्भावसपाटिकासंहनन नामकर्म । जिसके उदयसे स्पर्शकी उत्पत्ति होती है वह स्पर्श नामकर्म है। वह आठ प्रकारका है-कर्कश नामकर्म, मदु नामकर्म, गुरु नामकर्म, लघ नामकर्म, स्निग्ध नामकर्म, रूक्ष नामकर्म, शीत नामकर्म और उष्ण नामकर्म । जिसके उदयसे रसमें भेद होता है वह रस नामकर्म है । वह पाँच प्रकारका है-तिक्त नामकर्म, कटु नामकर्म, कषाय नामकर्म, आम्ल नामकर्म और मधुर नामकर्म । जिसके उदयसे गंधकी उत्पत्ति होती है वह गंध नामकर्म है । वह दो प्रकारका है--सुरभिगन्ध नामकर्म और असुरभिगन्ध नामकर्म । जिसके निमित्तसे वर्ण में विभाग होता है वह वर्ण नामकर्म है । वह पाँच प्रकारका है-कृष्णवर्ण नामकर्म, नीलवर्ण नामकर्म, रक्तवर्ण नामकर्म, हारिद्रवर्ण नामकर्म और शुक्लवर्ण नामकर्म । जिसके उदयसे पूर्व शरीरके आकारका विनाश नहीं होता है वह आनुपूर्व्य नामकर्म है । वह चार प्रकारका है--नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य नामकर्म, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्व्य नामकर्म, मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य नामकर्म और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्व्य नामकर्म । जिसके उदयसे लोहेके पिण्डके समान गुरु होनेसे न तो नीचे गिरता है
और न अर्कतूलके समान लघु होनेसे ऊपर जाता है वह अगुरुलघु नामकर्म है। जिसके उदयसे स्वयंकृत उद्बन्धन और मरुस्थल में गिरना आदि निमित्तक उपघात होता है वह उपघात नामकर्म है। जिसके उदयसे परशस्त्रादिकका निमित्त पाकर व्याघात होता है वह परघात नामकर्म है। जिसके उदयसे शरीरमें आतपकी रचना होती है वह आतप नामकर्म है। वह सूर्यबिम्बमें होता है। जिसके निमित्तसे शरीरमें उद्योत होता है वह उद्योत नामकर्म है । वह चन्द्रबिम्ब और जगुन् आदिमें होता है । जिसके निमित्तसे उच्छ्वास होता है वह उच्छ्वास नामकर्म है। विहायस्का अर्थ आकाश है । उसमें गतिका निर्वर्तक कर्म विहायोगति नामकर्म है । प्रशस्त और अप्रशस्तके भेदसे वह दो प्रकारका है। शरीर नामकर्मके उदयसे रचा जानेवाला जो शरीर जिसके निमित्तसे एक आत्माके उपभोगका कारण होता है वह प्रत्येकशरोर नामकर्म हैं । बहुत आत्माओंके उपभोगका हेतुरूपसे साधारण शरीर जिसके निमित्तसे होता है वह साधारणशरीर नामकर्म है। जिसके उदयसे द्वीन्द्रियादिकमें जन्म होता है वह त्रस नामकर्म है। जिसके निमित्तसे एकेन्द्रियोंमें उत्पत्ति होती है वह स्थावर नामकर्म है। जिसके उदयसे अन्यजनप्रीतिकर अवस्था 1. --नाम दुरभिगन्ध- आ., दि. 1, दि. 2। 2. हरिद्वणं- मु.। 3. मरुत्प्र- मु. ।
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