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________________ सूत्र ३० ३१ ३२ ३३ ३४ नका स्वरूप गा. ५५ मनः पर्यवज्ञानका स्वरूप और उपसंहार केवलज्ञान भवस्यकेवलज्ञान और सिद्धकेवलज्ञान दो मेद ३५-३७ मवस्थकेवलज्ञान सोपवल ज्ञान और अयोगिभवस्यकेवलज्ञान दो मेद ओर उसका स्वरूप ३०-४० सिद्धकेवलज्ञान के अनन्तर विकेवलज्ञान और परम्पर सिद्ध केवलज्ञान दो मेद और ४१ ४२ ४३ ४४ १५ ४.६ १७ हारिभद्रो वृत्ति सहित नन्दित्रका विषयानुक्रम | सूत्र विषय मन:पर्ययज्ञानका अधिकारी मन:पर्ययज्ञानके जुमति विपुलमति दो भेद इम्य-क्षेत्र-काल-भाव आमना उसका स्वरूप द्रव्य-क्षेत्र काल भाव आश्री केवलज्ञानका स्वरूप वृत्तिमें - केवलज्ञान- केवलदर्शन विषयक युगपदुपयोग एकोपयोग-क्रमोपयोगमान्यताओंकी चर्चा गा. ५६-५७ केवलज्ञानका स्वरूप और उपसंहार परोक्षज्ञानके अभिनवोधिक और श्रुत ज्ञान दो मेद आभिनि बोधिक ज्ञान और श्रुतज्ञानकी सदैव सहभाविता वृत्तिमै मतिज्ञान और धृतशनका पृथकरण-विवेक मतिज्ञान और मतिअज्ञान तथा श्रुतज्ञान और श्रुतअज्ञानका या सम्म ज्ञान और मिथ्यामतिज्ञानका एवं सम्यज्ञान और मिथ्याज्ञानविवेक आभिनिबोधकज्ञानके श्रुतनिश्रित अश्रुतनिचित दो मेद अधुतनिधित आभिनिबोधिज्ञानके मेद, स्वरूप और उदाहरण गा. ५८ अश्रुतनिश्रित मतिज्ञानके औत्पत्तिकी बुद्धि आदि चार मेद; गा. ५९-६२ औत्पत्तिकी बुद्धिका स्वरूप और उदाहरण; गा. ६३-६५ वैमयिकी बुद्धिका स्वरूप और उदाहरण; ६६-६७ Jain Education International ३१-३४ ३४ पत्र ३४-३६ ३६-३७ ३७ ३७-३८ ३८-४० ४०-४३ ४३-४४ 97 ४४-४५ ४५-४६ ४६ ४६-४९ ४८ ४९ ५० ५१ ५२ ५३ ५४ ५५ ५६ ५७ ५८ ५९ ६० विषय कर्मजा बुद्धिका स्वरूप और उदाहरण; ६८-७१ पारिणामिकी बुद्धिका स्वरूप और उदाहरण ७१ ७२ भुतनिश्चित मतिज्ञान के अवद ईदा आदि चार भेद अवग्रहके अर्थावग्रह व्यञ्जनावग्रह दो मेद व्यञ्जनवग्रहके मेद और स्वरूप अर्थावग्रहके मेद, स्त्ररूप और एकार्थिक ईहाके मेद, स्वरूप और एकार्थिक अपायके मेद, स्वरूप और एकार्थिक धारणाके मेद, स्वरूप और एकाfर्थक अवग्रह आदिका कालप्रमाण अवग्रह आदि भेदोंसे २८ प्रकारके मतिज्ञानका स्वरूप कथन करनेके लिये प्रतिबोधक और मलकके दृष्टान्त प्रतिबोधक दृष्टान्त द्वारा व्यञ्जनावग्रहके स्वरूपका निरूपण मल्लक दृष्टान्त द्वारा अवग्रह - ईहा अपायधारणा के स्वरूपका निरूपण For Private & Personal Use Only द्रव्य-क्षेत्र काल-भाव आश्री आभिनिबोधिक ज्ञानका स्वरूप ६१ श्रुतज्ञानके चौदह भेद ६२-६५ १ अक्षर श्रुतके संज्ञाक्षर, व्यञ्जनाक्षर और लब्ध्यक्षर तीन मेद और इनका स्वरूप गा. ७२-७७ आभिनिबोधिक ज्ञानके भेद अर्थ, कालप्रमाण शब्दश्रवणका स्वरूप, एकार्थिक नाम - शब्द और उपसंहार ६६ गा. ७८. २ अनक्षरश्रुतका स्वरूप ६७-७० ३ संज्ञिश्रुतके कालिक्युपदेश, हेतूपदेश और दृष्टिवादोपदेश तीन प्रकार, स्वरूप और अशित ५] सम्यद्वादशीके नाम ६ मिथ्याभूत-भारत, रामायण, दंगी, मासुक्ख आदि प्राचीन जैनेतर शास्त्रों के नाम और सम्यक्त मिध्यातका तात्विक विवेक ७३-७५ ७-८ सादि-अनादि श्रुतज्ञान, ९-१० पति- अपर्ववसित वज्ञान और उनका द्रव्य-क्षेत्र - काल-भाव आश्री स्वरूप १५ ५२ पन ४९ ४९ ४९-५० ५० ५०-५१ ५१ ५१-५२ ५२ ५२-५३ ५३-५५ ५५-५६ ५६-५८ ५८-५९ ५९–६० ६० ६०-६२ ६२-६४ ६४-६५ ६५-६७ www.jainelibrary.org
SR No.001441
Book TitleNandisutram
Original Sutra AuthorDevvachak
AuthorPunyavijay, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages248
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Metaphysics, & agam_nandisutra
File Size24 MB
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