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दृष्टिवादे गण्डिकानयोगः चित्रान्तरगण्डिकाच] श्रीदेववाचकविरचितं नन्दिसूत्रम् । एक्कारस तेवीसा सियाल सतरि सतहत्तरी तह य । इग दुग सत्तासीई एगत्तरिमेव बावट्ठी ॥१६॥ अउणत्तरि चउवीसा छायालसयं तहेव छठवीसा । एए रासीखेवा तिगअंतंता जहाकमसो ॥१७॥ सिवगति-सव्वदे॒हिं दो दो ठाण विसमुत्तरा णेया । जावुणतीसट्टाणे उणतीस पुण छवीसाए ॥१८॥ विसमुत्तरा य पढमा एवमसंख विसमुत्तरा णेया। सव्वत्थ वि अंतिल्लं अन्नाए आदिमं ठाणं ॥१९।। अउणत्तीसं वारे ठावेउं णत्थि पढमए खेवो । सेसेसऽडवीसाए सव्वत्थ दुगादिओ खेवो ॥२०॥ सिवगति पढमादीए वितियाए तह य होति सबढे । इय एगंतरियाई सिवगइ-सव्वट्ठठाणाई ॥२१॥ एवमसंखेजाओ चित्तंतरगंडियाओ णेयव्वा । जाव जियसत्तुराया अजियजिणपिया समुप्पन्नो ४॥२२॥४।
एवं गाहाहिं चित्ततरगंडियाओ समत्ताओ । इमा य एयासिं ठवणा| एत्तिया लक्खा सिद्धिं गया | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | | एत्तिया लक्खा सव्वलृ पि गया १ | २| ३ | ४ | ५ ६ ७ ८ ९ १० ५० | एवं जाव असंखा पुरिसजुगा सिद्धा । एसा पढमा १ । अओ परं
सिद्धा एत्तिया लक्खा १२| ३ | ४ | ५ | ६ | ७ | | सव्वट्ठम्मि गया एत्तिया लक्खा १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ | १४ |
एवं पि असंखेज्जा पुरिसजुगा सिद्धा । एसा बीया २ । अओ परं| सिद्धा एत्तिया लक्खा २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ | | सवढे वि गया एत्तिया लक्खा | २ ३ ४ ५ ६ ७ ८
एवं जाव असंखेज्जा आवलिया दुगाइएगुत्तरा दो वि गच्छंति । आवलिया दूरगमणओ पंचासइमे ठाणे चिट्ठति । तइया गंडिया ३ । अतः परं चतस्रो गण्डिका एकोतरिकादिकाः प्रदर्श्यन्ते| शिवगतौ १ ३ ५ | ७ | ९ एवं जाव असंखेजा | | सर्वार्थे च २४६८ | १० एवं जाव असंखेज्जा
चितंतरगंडिया एगाइएगुत्तरिया पढमा णेया १ । | सिद्धा एत्तिया १५ ९ एवं जाव असंखेजा | सवढे एत्तिया चेव ३७ | ११ एवं जाव असंखेज्जा एगादिबिउत्तरा बितिया चित्तंतरगंडिया २।
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