SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 636
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अपभ्रंश और पुरानी हिंदी के छन्द ६११ अन्यत्र कहीं भी अपभ्रंश तथा मध्ययुगीन हिन्दी काव्यपरम्परा में इस छन्द का कोई संकेत नहीं मिलता । सिर्फ भिखारीदास ने 'छन्दार्णव' के चौदहवें तरंग में मुक्तक कोटि के छंदों में इसका जिक्र किया है। उनके मतानुसार भी इस छन्द के विषम चरणों में १७ तथा सम चरणों में १८ वर्ण होते हैं। प्रथम चरन सत्रह बरन, दुतिय अठारह आनु । यों ही तीजउ चौथऊ गंधा छंद बखानु ॥ (छन्दार्णव १४.४) प्राकृतपैंगलम् और भिखारीदास दोनों ही न तो इस छन्द के प्रतिचरण की मात्राओं का ही संकेत करते हैं, न वर्णों की लगात्मक व्यवस्था या गण-प्रक्रिया का ही संकेत करते हैं । इससे यह संकेत मिलता है कि इस छन्द के तत्तत् चरणों में कितने लघु और कितने गुरु हों और उनकी व्यवस्था किस प्रकार की हो, इसका कोई महत्त्व नहीं है। घनाक्षरी छन्द की तरह इसमें वर्गों की संख्या मात्र नियत है, कवि अपनी रुचि से लगात्मक व्यवस्था कर सकता है। साथ ही इस दृष्टि से इसके चरणों में मात्राओं की संख्या भी अनियत होगी। हम प्राकृतपैंगलम् के लक्षणोदाहरण पद्यों तथा भिखारीदास के उदाहरणपद्य का विश्लेषण कर इसे स्पष्ट कर रहे हैं : दहसत्त वण्ण पढम पअ भणह सुरअणा, ३ ग १४ ल, २० मात्रा तह बीअंमि अट्ठारहहिं जमअ जुअ चरणा । ५ ग, १३ ल, २३ मात्रा एरिसि अ बीअ दल कुणहु भणइ पिंगलो, ४ ग १३ ल, २१ मात्रा गंधाणा णाम रूअउ हो पंडिअजणचित्तहरो ॥ ९ ग ९ ल, २७ मात्रा इस छंद के विश्लेषण से स्पष्ट है कि यहाँ लगात्मक व्यवस्था और मात्रिक संख्या में कोई नियम नहीं दिखाई देता । हम उदाहरण पद्य भी ले लें । कण्ण चलंते कुम्म चलइ पुणवि असरणा, ५ ग, १२ ल, २२ मात्रा कुम्म चलंते महि चलइ भुअणमअकरणा । ४ ग, १४ ल, २२ मात्रा महि अ चलंते महिहरु तह अ सुरअणा, ३ ग, १४ ल, २० मात्रा चक्कवइ चलते चलइ चक्क तह तिहुअणा ॥ ५ ग, १३ ल, २३ मात्रा यहाँ भी कोई नियमित व्यवस्था नहीं दिखाई पड़ती। यही हालत भिखारीदास के पद्य की है। सुंदरि क्यों पहिरति नग भूषन असावली, ५ ग १२ ल, २२ मात्रा तन की द्युति तेरी सहज ही मसाल-प्रभावली । ७ ग ११ ल, २५ मात्रा चोबा चंदन चंद्रकइ चाहै कहा लड़ावली, ९ ग ८ ल, २६ मात्रा तेरे बात कहत कोसल लौं फैले सुगंधावली ॥ १० ग ८ ल, २८ मात्रा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy