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१. ६९ ]
मात्रावृत्तम्
संस्कृत छन्दः शास्त्री इसे गीति छंद कहते हैं । जहाँ १२, १८ : १२, १८ मात्रा पाई जाती है । आर्यापूर्वार्धसमं द्वितीयमपि यत्र भवति हंसगते । छंदोविदस्तदानीं गीतिं ताममृतवाणि भाषंते ॥ टिप्पणी- उत्तद्धे० दे० ५२ । मत्ता ८ मात्रा: ( यहाँ यह स्त्रीलिंग ब० व० रूप है) ।
तीसंति<त्रिंशत्+इति ।
सो उग्गाहो वुत्तो. अपभ्रंश में लिंग में कभी कभी व्यत्यय देखा जाता है । संस्कृत तथा प्राकृत का लिंग अपभ्रंश में कभी कभी परिवर्तित हो जाता है। इसका संकेत हेमचंद्र ने भी किया है- 'लिंगमतंत्रं ८.४.५४५. अपभ्रंशे लिंगमतंत्रं व्यभिचारिप्रायो भवति । यहाँ संस्कृत स्त्रीलिंग 'उद्गाथा' तथा नपुंसक 'वृत्तं' दोनों का पुल्लिंग हो गया है, अतः परोक्षसूचक सार्वनामिक विशेषण भी पुल्लिंग में प्रयुक्त हुआ है 1
मत्तंगा < मात्रांगा (संधि के लिए दे० $ ४४ ( पठमंक) ।
जहा,
सोऊण जस्स णामं अंसू णअणाइँ सुमुहि रुंधति । भण वीर चेइवइणो पेक्खामि मुहं कहं जहिच्छं
६९. उद्गाथा का उदाहरण:
चेदिपति के प्रति अनुरक्त कोई नायिका सखी से कह रही है:- 'हे सुमुखि, जिसके नाम को सुनकर ही आँसू मेरी आँखों को रोक देते हैं, बता तो सही, उस चेदिपति के मुख को मैं इच्छानुसार कैसे देखूँगी ।'
टिप्पणी- सोऊण < श्रुत्वा । पिशेल ने पूर्वकालिक प्रत्यय (एब्सोल्युटिव) 'ऊण' - तूण की व्युत्पत्ति सं० * त्वान से मानी है; दे० $ ५८६ । सुण धातु के दुर्बल रूप / सो से इसका विकास मानना होगा। वैसे √ सुण धातु से 'सुणिऊण ' रूप भी बनता है, जिसका प्राकृत अप० में अधिक प्रचार है (दे० हेम. ८. ३. १५७) । इस प्रत्यय के अन्य रूप तु० मोत्तूण (मुक्त्वा), मरिऊण (मृत्वा), कादूण-काऊण (कृत्वा), घेत्तूण-घेऊण (गृहीत्वा) ।
णामं<नाम; संस्कृत हलंत शब्द म० भा० आ० में अजंत हो गये हैं; णाम + अं कर्म ए० व० ।
॥६९॥ [ उग्गाहा]
अंसू<अश्रूणि । उकारांत नपुंसकलिंग शब्द का कर्ता-कर्म ब०व० चिह्न 'ऊ'; इसमें निराश्रय अनुनासिक (स्पोंटेनियस नेज़ेलाइज़ेशन) पाया जाता है; हि० रा० आँसू ।
से तस्य ।
अह गाहिणी सिंहिणी,
[ ३५
अणाइँ नयनानि । सुमुहि<सुमुखि ।
चेइवइणो चेदिपतेः । इकारांत पुल्लिंग शब्दों में प्राकृत में अपादान - सम्प्रदान-संबंध ए० व० में 'णो' विभक्ति चिह्न भी होता है । दे० पिशेल ६ ३७७, तगारे ६९४ ।
पेक्खामि / पेक्ख+मि; वर्तमान उ० पु० ए० व० ।
७० गाहिनी तथा सिंहिनी छंद
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पुव्वद्ध
तीस मत्ता,
पिंगल पभणेइ मुद्धिणि सुणेहि ।
उत्तद्धे बत्तीसा, गाहिणि विवरीअ सिंहिणी भणु सच्चं ॥ ७० ॥ [ गाहिणी]
६९. सोऊण - B. C. सोउण, O सोउण्ण ।। जस्स - B. जस्सहि । णअणाइँ - A. B. णअणाई. C. (ण) अणांइ, D. णअणांइ, K. णअणाइँ । रुंधति - A. रुधेइ, C. रुधाई, D. रुद्धति, K. रुंधती । चेइवइणो - B. चइवइहिं, D. चेइपइणो । पक्खामि -C. K. पेक्खामि, D. पिछामि ( = पिछ्छामि ), 0. पेछामि । कहं B. कहिं । जहिच्छं- A. C. जहिछं, B. जहित्थं । से-B. हि । ६९C. ७२ । ७०. पिंगल-B. पिंगलो । तीस - C. तिस । पभणे - B. भणईए, C. भणेइ । मुद्धिणि -C. मुद्दिणि, D. मुद्धिणी । सुणेहिD. सुणिहो । सिंहिणी - 0 सीहिणी । भणु - A. भण, C. D. K. भणु । सच्चं - C. सव्वं । ७०–C. ७३ ।
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