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प्राकृतपैंगलम् xxx अबुह बुहाणं मज्झे, कव्वं जो पढइ लक्खणविहूणं । भूअग्गलग्गखग्गहिं, सीसं खुडिअं ण जाणेइ ।। (प्रा० पैं० १.११) अबुध बुधनि में पढतहीं, निझुकत लक्षणहीन । भृकुटी अग्र खरग्ग सिर, कटतु तथापि अदीन || (छंदमाला २.८)
भिखारीदास के 'छंदार्णव' में तो स्पष्टतः प्राकृत पैंगलम् का उल्लेख है और इसका 'अर र वाहहि' आदि पद्य (१.९) उद्धृत भी है।
१५७. मध्ययुगीन हिंदी साहित्य में अनेक छन्दोग्रंथों का पता चलता है, जिनमें कई उपलब्ध भी है । इनमें प्राचीनतम रचना जैन कवि राजमल्ल का 'पिंगल' (या छंदःशास्त्र), केशवदास की 'छन्दमाला' और चिंतामणि त्रिपाठी का 'छन्दविचार' है। जैन पंडित राजमल्ल नागौर के श्रीमाल जैन राजा 'भारमल्ल' के आश्रित थे और इन्हीं के लिये उन्होंने 'पिंगल' की रचना की थी। इसके उदाहरणपद्यों में 'भारमल्ल' और मुगल सम्राट अकबर दोनों का उल्लेख मिलता है । यह ग्रंथ अप्रकाशित है, और इसका कुछ अंश श्री कामताप्रसाद जैन ने 'हिंदी जैन साहित्य' के परिशिष्ट (१) में प्रकाशित किया है। केशव की 'छन्दमाला' को सर्वप्रथम आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने हिंदुस्तानी एकेडमी से संपादित 'केशवग्रंथावली' (खंड २) में प्रकाशित किया है। चिंतामणि का 'छन्दविचार' अप्रकाशित है। इसके बाद मतिराम के 'छन्दसार' ग्रंथ का भी नाम इतिहास-ग्रन्थों में मिलता है, पर वह भी अनुपलब्ध है। सुखदेव मिश्र के छन्दसंबंधी दो ग्रन्थों का पता आचार्य शुक्ल ने दिया है, 'वृत्तविचार' (संवत् १७२८); और 'छन्दविचार' । हमें ये दोनों ग्रंथ एक ही जान पड़ते हैं । शुक्लजी इनका कोई विवरण नहीं देते । सुखदेव मिश्र के बारे में वे लिखते हैं । :- 'छन्दशास्त्र पर इनका सा विशद निरूपण और किसी कवि ने नहीं किया' । सुखदेव मिश्र का पिंगल संबंधी एक ग्रन्थ दुर्गादत्त गौड ने काशी के लाइट छापेखाने से प्रकाशित कराया था, जो ४८ पृष्ठों में प्रकाशित हुआ है। वैसे सुखदेव का विवेचन अच्छा है, पर शुक्लजी का यह निर्णय कि छन्दःशास्त्र पर ऐसा विशद निरूपण किसी हिंदी कवि में नहीं मिलता, ठीक नहीं जान पड़ता। भिखारीदास का 'छन्दार्णव' हिंदी का सबसे अधिक प्रामाणिक, विस्तृत और वैज्ञानिक ग्रन्थ है। इसके बाद गदाधर की 'छन्दोमंजरी' का विवेचन भी काफी विशद कहा जा सकता है। हिंदी साहित्य के इतिहास में मनीराम मिश्र की 'छंदछप्पनी', रसिकगोविंद का 'पिंगल' और गुमान मिश्र की 'छंदाटवी' का उल्लेख है, किन्तु ये ग्रंथ हमें उपलब्ध नहीं हो सके हैं।
इस विषय के मध्ययुगीन हिंदी ग्रंथों में श्रीधर कवि का 'छंदविनोद', नारायणदास वैष्णव का 'छंदसार' और भिखारीदास का 'छंदार्णव' काफी प्रसिद्ध हैं। ये तीनों ग्रंथ सर्व प्रथम संवत् १९२६ में बनारस लाइट छापेखाने से प्रकाशित हुए थे। 'छंदार्णव' का नवीन संस्करण आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र ने 'भिखारीदास ग्रंथावली' के प्रथम खंड में प्रकाशित किया है। श्रीधर कवि का 'छंदविनोद' तीन परिच्छेदों में विभक्त है। प्रथम में गुरुलघ्वादि कथन है, द्वितीय में ४४ मात्राछन्दों का विवरण और तृतीय में ११० वर्ण वृत्तों का विवरण पाया जाता है । नारायणदास का 'छन्दसार' बहुत मोटा ग्रंथ है, जिसमें चुने हुए केवल ५१ छन्दों का निरूपण है, जिसमें मात्रिक और वर्णिक दोनों कोटि के छन्द हैं । भिखारीदास का १. प्राकृते, यथा
अरर वाहहि कान्ह नाव (छोटि) डगमग कुगति न देहि । ते इथ नै संतारि दै जो चाहहि सो लेहि ॥
- भिखारीदास ग्रन्थावली (प्रथमखंड) (छंदार्णव) पृ०. १६७ २. नागौरदेसन्हि संघाधिनाथो सिरीमाल,
राक्याणिवंसि सिरी भारामल्लो महीपाल || (पिंगल पद्य १६९) बर बंसह बब्बर साहि अकब्बर सब्बर किय सम्माणं । हिंदू तरिका णात उरिगाणा राया माणहि आणं ॥ (वही पद्य ११७) ३. हिन्दी जैन साहित्य का संक्षिप्त इतिहास परिशिष्ट (१) पृ० २३१-२३९. ४. दे० केशवग्रंथावली (खंड २) पृ० ४३१-४५६. ५. हिंदी साहित्य का इतिहास पृ० २६०
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