SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 58
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १.६५] मात्रावृत्तम् [३३ खत्तिणी । खत्ति+णि < *क्षत्रियाणी (क्षत्रिया) । इस ‘णी' स्त्रीलिंग वाचक प्रत्यय का विकास संस्कृत 'आनी' (अनुक्, दे० 'इन्द्रवरुणभवशवरुद्रमृडहिमारण्ययवयवनमातुलाचार्याणामनुक्; पाणिनि सूत्र') से हुआ है। यही 'णी' हि० 'इन' के रूप में विकसित हुआ है, पंडिताइन, बघुआइन । हि० में इसका 'नी' रूप भी पाया जाता है, मास्टरनी । राज० में हि० वाला 'इन' 'अन' हो जाता है, खातण (बढई की स्त्री), मालण (माली की स्त्री) । राज० में यह प्रायः ईकारांत पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग रूपों में जुड़ता है; अकारांत-ओकारांत पुल्लिंग शब्दों के स्त्रीलिंग रूपों में 'णी' (ही. 'नी') प्रत्यय ही होता है। बामणी ('बामण' (ब्राह्मण) की स्त्री), बन्याणी (बाण्याँ (उ० बाण्यूँ) +णी; बनिये की स्त्री), 'खायतणी' (खायत (कायथ)+ णी) । भणिआ -/भण+अ (इअ) निष्ठा प्रत्यय (भूतकालिक कर्मवाच्य कृदंत < सं० क्त)+आ (स्त्रीलिंगवाचक प्रत्यय < सं० आ) | सत्ताईसारसप्तविंशति; दे० ६ ५७ । वेसी वैश्या (यहाँ स्त्रीलिंगवाचक 'ई' प्रत्यय है ) । सुद्दिणी-सुद्द+इणी (स्त्रीलिंग वाचक 'इणी' प्रत्यय) जा पढम तीअ पंचम सत्तम ठाणे ण होइ गुरुमज्झा । गुव्विणिए गुणरहिआ गाहा दोसं पआसेइ ॥६५॥ [गाहा] ६५. जिस गाथा में प्रथम, तृतीय, पंचम तथा सप्तम स्थान में निश्चय ही गुरु मध्य गण (जगण) हो, वह गाथा गुर्विणी (गर्भिणी) कहलाती है, तथा वह गुणरहित होने के कारण दोष को प्रकट करती है। टिप्पणी-सत्तम सप्तम; पिशेल ४४९. हि० सातवाँ-राज. सातवाँ (उ० सातवँ । ठाणे<स्थाने; दे० ६ १४ ।। गुम्विणि 2 गुर्विणी ('गर्भिणी') । पआसेइ । पआस+ इ । (णिजंत तथा संस्कृत चुरादि के विकरण 'य' का विकसित रूप)+इ (वर्तमानकाल प्र० पु० ए० व० तिङ् विभक्ति); सं० प्रकाशयति । अह विग्गाहा । विग्गाहा पढम दले सत्ताईसाइँ मत्ताई। पच्छिम दले ण तीसा इअ जंपिअ पिंगलेण णाएण ॥६६॥ [विग्गाहा) ६६. विगाथा छंदःविगाथा के प्रथमार्ध में २७ मात्रा होती हैं, उत्तरार्ध में ३० मात्रा; ऐसा पिंगल नाग ने कहा है। विगाथा गाथा का उलटा छंद है। गाथा के पूर्वार्ध को उत्तरार्ध तथा उत्तरार्ध को पूर्वार्ध बना देने पर विगाथा छंद होता है। इस प्रकार विगाथा में १२, १५ : १२, १८ मात्रा होती है। टिप्पणी-सत्ताईसाई मत्ताई। सप्तविंशति *मात्राणि दे०६ ५७ । पच्छिम् । पश्चिमे । ण । ननु; इसका 'णं' रूप भी मिलता है। ६५. तीअ-D. तीय । ठाणे C. ठाणे । होइ-D. होति । गुव्विणिए-B गुव्विणिव्व, C. गुव्विणिआ, D.K. गुव्विणिए । गुणरहिआD. गुणरहिया । पआसेइ-D. O. पआसेई । ६५-C. ६८ । ६६. अह विग्गाहा-B. अथ विग्गाहा, C. गाहा, D. विग्गाहा । विग्गाहाC. विगाहा । सत्ताईसाई-A सत्ताईसाई. C. सत्ताइसाइ, D. सत्ताईसाई । मत्ताई-A मत्ताई, C. मत्ताइ, D. O. मत्ताई। पच्छिमC. o. पछिम (=पछिम) D. पछि । दले ण-0. दले हि । इअ-A इम, B ईएम। जंपिअ-C. जंविअ, O. भणिअं। णाएणणाअन, D. णागेण. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy