SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 546
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राकृतपैंगलम् का छन्दःशास्त्रीय अनुशीलन पद्माकर के पौत्र कवि गदाधर ने 'छन्दोमंजरी' के वर्णिक वृत्त प्रकरण में लक्षणों में 'यति' का संकेत नहीं किया है, किन्तु वहाँ भी उदाहरणों में इसकी पाबंदी पाई जाती है। श्रीधर कवि कृत 'छंदोविनोद' तथा नारायणदास वैष्णव कृत "पिंगलछंदसार' में भी लक्षण में 'यति' का कोई संकेत नहीं है। ऐसा जान पड़ता है, मध्ययुगीन हिन्दी छन्दशास्त्रियों ने लक्षण में यति का संकेत करना सर्वथा आवश्यक नहीं समझा है, पर लक्ष्य में सदा उसका ध्यान रक्खा है। हिन्दी कवियों ने प्रायः इन स्थलों पर 'यति' का प्रयोग अवश्य किया है। हरिऔध, अनूप शर्मा, मैथिलीशरण गुप्त सभी द्विवेदी-युगीन कवियों ने यति की पाबंदी का ध्यान रक्खा है, यह दूसरी बात कि क्वचित्-कदाचित् इसका उल्लंघन हो गया हो । अनूप शर्मा की शिखरिणी में नियतरूप से ६, ११ वर्णों पर पदमध्यगत यति का संनिवेश किया गया है : धरा छोडूंगा मैं, अतलखनि है जो अनय की, अभी मैं त्यागूंगा, धन-विभव जो हेतु दुख का । तनँगा नारी जो, विषयतरु की मूल दृढ है, अभी मैं जाऊँगा, जगत-हित के हेतु गृह से ।। (सिद्धार्थ महाकाव्य) मात्रिक छन्दों में यति-विधान १३६. प्राकृत के गाथावर्ग के मात्रिक छन्दों में यति का कोई खास नियम नहीं जान पड़ता । जहाँ तक गाथा का सम्बन्ध है, ऐसा जान पड़ता है, गाथा मूलतः चतुष्पदी छन्द न होकर द्विपदी छन्द है । इसके लक्षणों में भी कुछ ग्रन्थकार केवल प्रथम एवं द्वितीय अर्धालियों के अनुसार ही मात्राओं की गणना का संकेत करते हैं । प्रा० पैं० में गाथा के उलटे छंद विगाथा के लक्षण में चारों चरणों की अलग अलग मात्रा न देकर प्रथम तथा द्वितीय दल की मात्राओं की ही गणना दी है, यह इसके द्विपदीत्व का संकेत कर सकता है। ऐसा जान पड़ता है, आरंभ में गाहा (गाथा) में प्रथम अर्धाली में ३० तथा दूसरी अर्धाली में २७ मात्रा का विधान था, तथा यह शिखा और माला जैसे मात्रिक छन्दों की तरह विषमा द्विपदी थी। इसके दोनों पदों में १२वी मात्रा पर उच्चारण की दृष्टि से विराम (यति) पाया जाता था, जो तालवृत्तों वाली 'तालयति' की तरह का विश्राम न होकर केवल उच्चारणकृत विश्राम था । धीरे धीरे यह यति पाद-पूर्ति का चिह्न मान ली गई और नन्दियड्ड के पहले ही इसे चतुष्पदी माना जाने लगा था । नन्दियड्ड, जो प्राचीनतम प्राकृत छन्दःशास्त्री हैं, गाथा का लक्षण १२:१८, १२:१५ ही मानते हैं । गाथा छंद की यह (१२ वी मात्रा वाली) यति, जो बाद में प्रथमतृतीय पादांत यति बन बैठी, नियत रूप से सभी गाथाओं में नहीं पाई जाती थी, तथा इस यति का न होना दोष नहीं माना जाता था । ऐसी भी गाथायें पाई जाती हैं, जिनमें यह यति नहीं पाई जाती । ज्योंही गाथा में 'यति' का नियमतः १. मगण सगण जगणे सगण तगण तगण गरु अन्त । शारदूलविक्रीडिताहिँ छन्द कहत मतिवन्त ॥ छन्दोमंजरी (वर्णवृत्त प्रकरण ५१) पृ० १८६ मगण रगण भगणै नगण यगण तीन फिर जान । छन्द स्रग्धरा जानिये पिंगल करत बखान || (वही, ६७) पृ० १८९ नगन जुगल जो है मो गना साथ सो है, यगन यगन दोऊ तासु आगे कियो है। छह गुरु नव लो जो पंद्रहै वर्न कंदा, कविवर इमि ठानो मालिनी नाम छंदा ॥ - छंदविनोद ७८, पृ० २५ वरन सुषट् लघु दोइ गुरु दोय रगण गुरु अंत । छंद मालिनी कहत कवि जे पिंगल मतवंत ॥ - पिंगलछंदसार ४० पृ० १३ There are however a few points which help to decide in favour of its being considered a Dvipadi. Velankar: Apabhramsa Metres II (Journal. Bomb. Univ.) Nov. 1936, p. 51 विग्गाहा पढम दले सत्ताईसाइँ मत्ताइँ । पच्छिम दले अ तीसा इअ जंपिअ पिंगलेण णाएण || - प्रा० पैं० १.५६ पढमो बारहमत्तो बीओ अवारसासु मत्तासु । जह पढमो तह तइओ पन्नरसविभूसिया गाहा । - गाथालक्षण १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org?
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy