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________________ ५१४ प्राकृतपैंगलम् फलित ज्योतिष का; किंतु एक गण के बाद अमुक गण ही अच्छा रहेगा, अमुक गण नहीं, इसका वस्तुतः सूक्ष्मातिसूक्ष्म संगीतात्मक तत्त्व से संबंध जान पड़ता है। इन मैत्र्यादि संबंधों का छन्दःशास्त्र में ठीक वही महत्त्व जान पड़ता है जो संगीतशास्त्र में वादी, संवादी, अनुवादी तथा विवादी स्वरों का परस्पर माना जाता है । यदि किसी एक स्वर के साथ अन्य वाद्य पर विवादी स्वर बजाया जाय या उसके ठीक बाद उसी वाद्य पर विवादी स्वर बजाया जाय तो भी, वह कटु मालूम पड़ेगा, किंतु संवादी स्वर ऐसी दशा में मधुर लगेंगे । इसीलिये कुशल संगीतज्ञ इसे जरूरी समझते हैं कि "एक के बाद एक स्वरों का ऐसा प्रबंध होना चाहिए, जो रसों और भावों को उद्दीप्त करके चित्त को प्रसन्न करे ।"२ स्वरों के इसी क्रमबद्ध उतार-चढ़ाव को पारिभाषिक शब्दावली में 'संक्रम' कहा जाता है, जो अंगरेजी शब्द 'मेलोडी' का समानांतर है। भारतीय छन्दःशास्त्र में भी तत्तत् गणों के मैत्र्यादि-विधान तथा तत्तत् छंदों में वर्णिक या मात्रिक गणों की निश्चित क्रमबद्ध व्यवस्था का मूल यही 'संक्रम' भावना है। इस बात पर जोर दिया जा चुका है कि 'लय' छंद की ही नहीं स्वयं काव्य की आत्मा है। यही कारण है कि लयरहित काव्य की कल्पना करना ही असम्भव है। कुछ नये हिंदी कवियों ने छन्दोबंधन से मुक्ति पाने का जिहाद छेड़ने वक्त इस बात का खयाल नहीं रखा कि काव्य सब कुछ बर्दाश्त कर सकता है, लयात्मक अराजकता नहीं । स्वच्छन्द या मुक्त छंदों (Vers libre) का विकास फ्रेंच रोमैंटिक कवियों की स्वातन्त्र्य-लिप्सा का एक उदाहरण है, फिर भी जैसा कि मैंने अन्यत्र इसका संकेत किया है, छन्दोबंधन से मुक्ति की आवाज को बुलन्द करने वाले इन कवियों ने 'लय' की सदा रक्षा की है। "भाषा की भाँति प्रतीकवादी कवियों ने छन्द को नवीन रूप दिया । इन कवियों की यह छन्द:प्रणाली 'स्वच्छन्द छंद' (बेर लिब्र) के नाम से प्रसिद्ध है। प्राचीन रूढिगत छंदों का त्याग समस्त रोमैंटिक कवियों की एक विशेषता रही है। बोदेलेर ने 'पेती पोएम आँ प्रोज' लिखकर छंदबंध का अंत किया। कितु यह छन्दबंध का विरोध ‘ल वेर ओफीसिए' (अधिकृत छंद) का ही था, अर्थात् जहाँ तक प्रवाह का प्रश्न है, ये 'बेर लिब्र' भी उससे युक्त थे । इन छंदों में 'संगीतात्मकता' कवि तथा पाठक के बीच वही कार्य करती है, जो रूढ छन्दों में । यह दूसरी बात है कि कुछ कवियों के हाथ पड़ कर यह छन्द लावण्यहीन हो जाते हैं, किंतु इसके लिए दोषी कवि है, छन्द नहीं।"१ अमरीकी कवि वाल्ट व्हीटमैन ने मुक्त छन्दों का धड़ल्ले से प्रयोग करने पर भी लय का ध्यान नहीं रक्खा, संभवतः इसीलिये उसकी कविताओं को इज़रा पाउन्ड ने “Nauseating pills' कहा था। ___ वस्तुतः मात्रिक-वर्णिक, तुकांत-अतुकांत, शास्त्रीय-अशास्त्रीय, बद्ध-मुक्त सभी तरह के छन्दों की मूल इकाई, उसका 'न्यूक्लियस' यही 'लय' या 'रिदमिक पैटर्न' है । मुक्त छन्द मुक्त होने पर भी लय के बंधन से मुक्त नहीं, इसे सभी न भूलना होगा। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि स्वच्छन्द छन्द में छन्दोमुक्ति होने पर भी छन्दोबद्धता अवश्य है। इसे दूसरे ढंग से हिंदी कवि श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला ने भी स्वीकार किया है - "मुक्त छन्द तो वह है, जो छंद की भूमि में रह कर भी मुक्त है ।"५ 'छन्द की भूमि में रहना' मुक्त छन्द के लिए भी लाजमी है, नहीं तो उसमें और गद्य में कोई भेद न रहेगा । आंग्ल कवि टी० एस० इलियट ने इसी बात पर जोर देते कहा था - No Verse is free for the man who wants to do a good job. स्वच्छन्द छन्दों में भी कुशल कवि अनुप्रास, वीप्सा, पदमध्यग तुक तथा पादांत तुक की योजना इसलिये करते देखे जाते हैं कि इससे छंद में 'लय' की सृष्टि हो जाती है। निराला इसके लिये खास तौर पर मशहूर हैं। "काँप रही थी वायु, प्रीति की प्रथम रात की नवागता, पर प्रियतम-कर पतिता सी प्रेममयी, पर नीरव अपरिचिता-सी पर भी लय स्वच्छन्द छत त्रिपाठी १. ललितकिशोर सिंह : ध्वनि और संगीत पृ० ८७ २. वही पृ० १०३ ३. समालोचनाङ्क (साहित्यसंदेश, १९५२) में मेरा 'पाश्चात्य साहित्यशास्त्र के कुछ प्रमुख बाद' लेख पृ० १७० ४. परिमल (भूमिका) पृ० २१ 4. The Music of Poetry (T. S. Eliot : Selected Prose) p. 65 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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