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________________ ५१२ प्राकृतगलम् स स ज ग स भ र लग वियोगिनी : ललगाललगालगालगा, ललगागाललगालगालगा इसी तरह मालिनी छंद की आरंभिक दो नगण वाली योजना इसे कोमल भावों - शृंगार, करुण, शांत, प्रात:काल वर्णन आदि की व्यंजना के उपयुक्त बना देती है, किंतु उद्धत भावों की व्यंजना में यह छंद निकम्मा ही साबित होगा। छंद की गति स्वयं किसी मदमंथर गति से पदन्यास करती नायिका का चित्र सामने खींच देती है। ArranMA, AAMA मालिनी न न म य य ललललललगागागालगागालगागा मन्दाक्रान्ता छंद को विरहव्यंजना का सशक्त अस्त्र माना गया है, संभवत: इसकी सारी गति आरंभ में चार दीर्घ अक्षरों में एक साथ उफन कर तब पाँच अक्षरों तक सिसकियाँ भरते विरही या विरहिणी का चित्र खींच सकती है। उसके बाद दो दीर्घ तथा एक ह्रस्व अक्षरों का क्रमिक उतार-चढाव, भाव की क्रमशः उतरती-चढती गति की रूपरेखा उपस्थित करते हैं । चार, छ: तथा सात की यति पर रुक रुक कर छंद का आगे बढ़ना भी इसमें योग देता है। AAAA,aaaaa AAMANA म भ न त ग ग मन्दाक्रान्ता : गागागागा, लललललगा, गालगागालगागा मन्दाक्रान्ता की सारी जान बीच के पाँच लघु उच्चारण हैं । ये सभी छंद उद्धत भावों की व्यंजना में सफल नहीं होंगे, जब कि भुजंगप्रयात, शार्दूलविक्रीडित, स्रग्धरा जैसे छन्दों की गति स्वयं ही औद्धत्य की परिचायिका है। भुजंगप्रयात MAMA MAMA स्रग्धरा AAMAMMorporaMamam म र भ न य य य शार्दूलविक्रीडित AMARAMom AM-MA- इन छंदों में मगण (555) रगण (15), तथा यगण (155) खास तौर पर शक्तिशाली गण है। भुजंगप्रयात में बिना किसी यति के एक क्षण उतार के बाद दो क्षण चढाव के चार आवर्तक उसकी गति को साँप की गति की तरह तेज बना देते हैं। इसी तरह स्रग्धरा का लंबा विस्तृत परिवेश, म, र तथा अंत में एक साथ तीन यगण की योजना इसे भी प्रबल तथा तेजी से हृदय में उठते उद्धत भावों के अनुरूप सिद्ध करते हैं । शार्दूलविक्रीडित की १२ अक्षरों को एक साँस में पढ़ने की गति ही उसे उद्धतता दे देती है; इस छंद का वीरादि रसों में सफल प्रयोग हुआ है, वैसे कुछ कवियों ने इसका शृंगार में भी कुशल प्रयोग किया है, ठीक वैसे ही जैसे घनाक्षरी शृंगार और वीर दोनों में एक साथ कुशलता से प्रयुक्त हुआ है। घनाक्षरी की गति दोनों के अनुरूप इसलिये भी हो सकी है कि उसमें वर्णिक गणों की नियत योजना नहीं पाई जाती, वह मुक्तक वर्णिक वृत्त जो है। फिर भी हिंदी के शृंगार तथा वीर रसों में प्रयुक्त घनाक्षरियों की जाँच पड़ताल करने पर पता चलेगा हि जहाँ शृंगार रस में सफलतया प्रयुक्त घनाक्षरियों में लघ्वक्षरों के उच्चरित की मात्रा अधिक होगी, वहाँ वीरादि रसों में प्रयुक्त घनाक्षरियों में गुर्वक्षरों के उच्चरित की मात्रा अधिक मिलेगी । देव और घनानन्द जैसे कवियों की घनाक्षरियों की तुलना भूषण की घनाक्षरियों से करने पर संभवतः यह अनुमान सत्य निकले । सवैया छंद की गति (cadence) तथा लय (rhythm) स्वयं वीरादि रसों के अनुपयुक्त हैं; मूल वणिक सवैया या तो सगण (15) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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