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१.५१] मात्रावृत्तम्
[२७ (१) द्वाचत्वारिंशत् >*बाअआलीस > बाआलीस-बायालीस (पिशेल, प्रा०पैं०)
(२) द्वाचत्वारिंशत् > *बइअत्तालीस > बइतालीस > बिइतालीस. इसके 'बइतालीस' (आदिनाथचरित), 'बितालीस' (आदि च०) रूपों का संकेत प्रा०प०राज० में टेसिटोरी ने किया है। दे. टेसिटोरी ९८०.
हि० बयलीस-बयालीस. रा० बयाँळीस-बयाँळी (हाडौती; बियाँळी), इस संबंध में इस बात का संकेत कर दिया जाय कि 'चत्वारिंशत्' के 'तालीस' वाले विकसित रूपों की हिंदी-रा० में कमी नहीं है-दे० उंतालीस (ऊनचत्वारिंशत्), इकतालीस (एकचत्वारिंशत्), तितालीस (त्रिचत्वारिंशत्), पैंतालीस (पञ्चचत्वारिंशत्) ।
लक्खं > लक्षं (हि०रा० लाख) ।
तेरह < त्रयोदश । इसका 'तेरस' रूप सुयगडंग तथा उवासगदसाओ में अर्धमागधी में मिलता है । 'तेरह' रूप महाराष्ट्री तथा अपभ्रंश-अवहट्ट, तथा प्रा०पैं० (१.९.२.५८,६६) में भी मिलता है। दे० पिशेल ४४३. प्रा०प०राज० में इसका 'तेर' रूप मिलता है । दे० टेसिटोरी 8 ८०. हिं० तेरह, रा० तेरा (उच्चा० थेरा) गु० तेर ।
कोडी > कोटि । (इसी में अवहट्ठ काल में रेफ का आगम होने से 'कोडी-क्रोड' रूप निष्पन्न होता है, जिसमें परवर्ती रूप से हि० करोड, रा० कोड शब्द बने हैं। समग्गाई < समग्राणि (ई नपुंसक० कर्ता-कर्म ब०व०)
अह गाहापअरणं (अथ गाथाप्रकरणम्), होइ गाहू मत्त चउअण्ण गाहाइ सत्तावणी । तह विग्गाह पलट्टि किज्जइ उग्गाहउ सट्ठि कल ॥ गाहिणी अ बासट्ठि किज्जइ । तह वि पलट्टइ सिंहिणी बे अग्गल हो सट्ठि।
सत्तरूअ अण्णोण्ण गण खंध मत्त चउसट्ठि ॥५१॥ [रड्डा] ५१. अब मात्रिक छंदो के प्रकरण को आरंभ करते हुए सर्वप्रथम 'गाथा' तथा उससे संबद्ध छंदों का वर्णन करेंगे।
गाहू छंद ५४ मात्रा का होता है, गाथा में ५७ मात्रा होती हैं। गाथा की ही उलटी विगाथा होती है (इसमें भी ५७ मात्रा ही होती हैं)। उद्गाथा में ६० मात्रा होती है। गाथिनी में ६२ मात्रा की जाती हैं । गाथिनी को ही उलटने पर सिंहिनी छंद होता है, इसमें भी ६२ मात्रा होती हैं। ये सात प्रकार के मात्रिक छंद अन्योन्यगुण हैं। स्कंधक छंद में ६४ मात्रा होती हैं।
इस पद्य में 'रड्डा' छंद है, जिसका विवरण आगे आयेगा । रड्डा छंद में नौ चरण होते हैं, जिनमें बाद के चार चरण दोहे के होते हैं। पूर्व के पाँच चरणों में क्रमशः १५ (प्रथम), १२ (द्वितीय), १५ (तृतीय), ११ (चतुर्थ), १५ (पंचम) मात्रा होती हैं। इस तरह रड्डा में कुल १५+१२+१५+११+१५+१३+११+१३+११ = ११६ मात्रायें होती हैं।
टिप्पणी-चउअण < चतुःपंचाशत् (पिशेल ने इसका कोई संकेत नहीं किया है) उसकी व्युत्पत्ति *चउपण, चउवण्ण, *चउअण्ण के क्रम से होगी । पिशेल ने पञ्चाशत् के पण्णं, वण्णं रूपों का संकेत अवश्य किया है, दे० पिशेल $ ४४५ । टेसिटोरी ने प्रा० प० राज० 'चोपन' रूप का संकेत किया है (दे० ६८०), जो आज भी इसी रूप ५१. C. अथ गाथाप्रभेदः। *गाहू-C. ग्गाहू । मत्त-D. मत्तह । चअण्ण A. B. चोअण्ण, D. चुंअण्ण, चउण । गाहाइ-A. तह गाहाइ, C. तह गाहा, D. गाहाई । सत्तावणी A. सत्तावण, B. सत्तावणइ, C. सत्तावणी D. सत्तावण्ण, K. सत्तावणिअ, 0. सत्तावण्णी। तह-A. तेहि, D. तह । विग्गाह-C. विग्गाहा । पलट्टि-C. पलटि । किज्जइ-A. किज्जिअइ; C. दिज्जइ, D. कुणइ । उग्गाहउ सट्ठि कल-B. उग्गाह सट्ठिकला; C. उग्गारहइसहि, D. उग्गाहो सट्ठिकल, 0. उगाहहु सट्ठिकला । गाहिणी अ-A. गाहिणि अ, B. गाहणि अ, C. पर गाहिणी अ, I D. गाहीणि अ, N. गाहणिआ । बासट्ठि-A. वासठि, B. वासठ्ठि, C. वासट्टि, D. वासठ्ठिहि । किज्जइ-A. करु मत्तइ, D. कलइ, O. दिज्जइ। पलट्टइ-A. पलट्टिअ, B. पलटइ, C. D. पलट्ठइ, K. पलट्ठइ । सिंहिणीA. सिंहणी, C. सिंघिणी, D. सिंहिणि, O. सीहिणी । अग्गल-0. अग्गा । हो-A. होइ, D. कल । सट्ठि-C. सट्टि, खंध-C. खंधा, 0. खिध। चउसट्ठि-A. B. चौसट्ठि D. चोसट्ठि, C.चउसट्टि।
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