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पद-विचार इसी का विकास ब्रजभाषा में 'हौं' तथा गुजराती-राजस्थानी में 'हूँ' पाया जाता है। संदेशरासक तथा उक्तिव्यक्ति में भी यह रूप पाया जाता है।
(२) 'मइ' का विकास प्रा० भा० आ० करण ए० व० मया > म० भा० आ० मइ-मइँ के कम से माना जाता है। प्रा० पैं० में इसका कर्ता कारक ए० व० में भी प्रयोग मिलता है, जिसका विकास आगे खड़ी बोली हि० 'मैं' के रूप में पाया जाता है । करण में इसका प्रयोग उक्तिव्यक्ति में भी मिलता है।
(३) 'हम' कर्ता कारक ब० व० का विकास *अस्म-> अम्ह-> हम, के क्रम से हुआ है।
(४) 'मुज्झे' का विकास, जो हिंदी में तथा प्रा० पैं० में भी कर्म ए० व० में पाया जाता है, मूलतः 'मां' से हुआ है। मां > मज्झ-मज्झं > अप० मज्झु । अप० में 'मज्झ-मज्यु' अपादान-संबंध ए० व० में पाया जाता है। संदेशरासक में यही रूप मिलता है :- "मइ जाणिउ पिउ आणि मज्झ संतोसिहइ" (१९७ अ) । इसीके 'मज्झु' रूप की उ-ध्वनि का वर्णविपर्यय होने पर 'मुज्झ' (हि० मुझ) रूप बनेगा, जिसका तिर्यक् रूप 'मुझे' है।
(५) 'मम, मे' शुद्ध प्रा० भा० आ० रूप हैं, मह-महि का संबंध 'मां' से जोड़ा जाता है ।
(६) 'अम्हाणं' का विकास * अस्मानां > अम्हाणं के क्रम से माना जाता है । 'अम्मह' में 'ह' अपभ्रंश संबंध ब० व० का विभक्ति चिह्न 'अम्म < अम्ह < अस्म-, के साथ जोड़ दिया गया है।
'हम्मारो-हम्मारी' का विकास इस क्रम से हुआ है :अस्म-कर > अम्ह-अर > हम्म-अरउ > हम्मारो, अस्म-करी > अम्ह-अरी > हम्म-अरी > हम्मारी,
इसी के खड़ी बोली में हमारा हमारी, तथा राज० में म्हारो-म्हारी रूप पाये जाते हैं। पिशेल ने इनका विकास *म्हार > *महार > *हमार के क्रम से माना है । ६८९. मध्यम पुरुष वाचक सर्वनाम :- प्रा० पैं० की पुरानी हिन्दी में इसके ये रूप मिलते हैं । ए० व०
ब० व० तुहु (२.९१), तुहुँ (१.७), तइ (१.९)
तुअ (१.१५७), तुमा (२.८) करण सम्प्रदान-संबंध तुअ (तुभ्यं २.१३०, तव २.१५५, तुम्ह (२.२०७), तुम्हा (२.६५),
२.१९१), तुह (तुभ्यं २.१०५), तुज्झे तुम्हाणं (२.१२)
(२.४), ते (२.१३२), तोहर (२.२४) अधिकरण
(१) 'तुह-तुहँ' का विकास 'त्वं' से मानने में यह दिक्कत आती है कि वहाँ 'ह' नहीं पाया जाता । अतः ऐसा जान पड़ता है कि यह 'ह' ध्वनि 'अस्म-' के मिथ्यासादृश्य पर बनाये गये कल्पित रूप *तुष्म का विकास है :- अस्म: अह-: : * तुष्म-:तुह- ।।
(२) 'तइ' इसका विकास करण ए० व० त्वया + -एन > तइँ -तइ के कम से हुआ है।
(३) 'तुअ, तुह,' का विकास *तुष्म से हुआ है तथा यह मूलतः सम्बन्ध कारक का रूप हैं किन्तु कर्म में भी प्रयुक्त होने लगा है । इसका अप० में तुहु रूप मिलता है। सन्देशरासक में इसके अप० 'उ' वाले रूप तुहु के साथ १. Tagare : Historical Grammar of Apabhramsa $119 A., p. 207 २. Pischel : Grammatik $418, p. 294 3. Pischel : $ 434
कता
कर्म
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