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________________ २२] प्राकृतपैंगलम् [१.४५ अह अस्स पताका, उदिठ्ठा सरि अंका दिज्जसु । पुव्व अंक परभरण करिज्जसु । पावल अंक पढम परिदिज्जसु । पत्थरसंख पताका किज्जसु ॥४५ ॥ (अडिल्ला) ४५. वर्णपताका: उद्दिष्ट के समान अंक दो, पूर्व अंक से पर अंक को भरो (जोडो), प्राप्त अंक को प्रथम दो, इस प्रकार प्रस्तस्संख्या से पताका करो । जैसे वर्णोद्दिष्ट में अंक दिये वैसे ही अंक दो तथा उनको निम्न क्रम से सजाने पर किस छंद के किस भेद में कितने गुरु या लघु होंगे इसका पता लग सकता है। मान लीजिये, चतुरक्षर प्रस्तार के किस किस भेद में कितने गुरु या लघु होते हैं, यह जानना है, तो हम सर्वप्रथम १, २, ४, ८ क्रमश: दुगने अंक लिखते हैं । पिछले प्रस्तार चक में हम देख चुके हैं कि चतुरक्षर प्रस्तार के १६ भेद होते हैं, अर्थात् १६ वाँ भेद अंतिम सर्वलघु (।।।।) भेद है तथा प्रथम भेद सर्वगुरु (5555) भेद होता है। हम देखते हैं कि सर्व प्रथम भेद सर्वगुरु है तथा अंतिम सर्वलघु । इसके पूर्व ८ अंक को पिछले अंक ४ में जोडने से १२ आयेंगे, वे ८ के नीचे लिखेंगे, तदनन्तर इसमें दो मिलाकर १४ लिखेंगे, फिर उसमें १ जोडने पर १५ लिखा जायगा । भाव यह है, चतुरक्षर प्रस्तार में ८.वाँ, १२ वाँ, १४ वाँ तथा १५ वा भेद एक गुरु का होगा । ८ वाँ भेद 51, १२ वाँ भेद ।।।, १४ वाँ भेद ॥51, तथा १५ वाँ भेद ॥ऽ होगा । नीचे के रेखाचित्र में पाँच खाने क्रमशः सर्वगुरु, त्रिगुरु, द्विगुरु, एकगुरु तथा सर्व लघु भेदों की गणना तथा तालिका प्रस्तुत करते हैं | १ | २| ४ ८ ३६ |१२ १४ | | १२ टि ० सरि < सदृक् । दिज्जसु-विधि का म०पु०ब०व० का रूप । (कुछ लोग इसे कर्मवाच्य रूप मानते हैं, सो ठीक नहीं) पावल-vपा+अ+ल. भूतकालिक कर्मवाच्य कृदंत का रूप जिसमें 'व' श्रुति है (सं० प्राप्त)। परिदिज्जसु-निर्णयसागर प्रति में 'परतिज्जसु' (< सं० परित्यज्यतां) पाठ लिया गया है । '-ज्जसु' वाले ये सभी रूप विधि प्रकार के हैं, कर्मवाच्य के नहीं, '-सु' म०पु०ब०व० का तथा '-ज्ज-' विधि का चिह्न है। __अह मत्ता मेरु. दुइ दुइ काट्ठा सरि लिहहु पढम अंक तसु अंत । तसु आइहि पुण एक्क सउ पढमे बे वि मिलंत ॥४६॥ (दोहा] सिर अंके तसु सिर पर अंके । उवरल काट्ठ पुरहु णीसंके । मत्तामेरु अंक संचारि । बुज्झहु बुज्झहु जण दुइ चारि ॥४७॥ [पादाकुलक] ४५. A. C. O. अथ वर्णपताका. D. अडिल्ल । उदिठ्ठा B. उद्दिट्ट, C. उद्दिष्टा । सरि-D. सिर । अंक-0. अंके । भरण-C. भरन । पावल-A. पाउल, C. पाओल । परिदिज्जसु-A. B. °तेज्जसु, C. परिदिज्जसु, D, परितज्जसु । पत्थर-A. B. पत्थार। संखC.O. संखे. D. संष । किज्जसु-B. D. लिज्जसु. ४६. A. B. C. . अथ मात्रा मेरुः, D. दोहा । काट्ठा-C.O. कोठा । सरि-D. सिर । पुण-C. पुनि, B लेखे न प्राप्यते । स-C. सउं D. सुं । बे वि B. K. बे बि । ४७. D. पादाकुलकं । उवरल0. उअरल । पुरहु-A. B. C. पूरहु D. K. पुरह । णीसंके B. णीसंक, D. नि:संके, K. णिस्संके, N. नीसङ्के । बुज्झहु-A. वुज्झहु, B. वुट्ठउ, C. वुज्झहु, D. बुझ्झइ K. बुझ्झइ, 0. वुज्झउ। दुइ-A. दुहू । चारि-D. च्यारि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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