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मात्रावृत्त ३४.
३५.
३९.
४२.
वर्णवृत्त
ध्वनि- विचार
D. 1. 2. 4. 6. 8. 11. अठ्ठ इठ्ठ. B ठ. 1. 4. अट्ट अट्ट (= अट्ठ इट्ठ). D. 1. 2. 4. 6. अवसिठ्ठउ. B. 2. 4. 5 अवसिट्टउ (= अवसिट्ठउ ). D. 1. 2. 4. 6. णठ्ठे B. 2. 5. णट्टे (= णट्टे).
D. 1. 2. 4. 6. 8. 11. उद्दिठ्ठा B. 2. 5. उद्दिट्टा (उद्दिट्ठा).
८०.
D. 1. 2. 4. 5. वघ्घ B. 4. 6. 7. बग्ग (= वग्घ)
९३. D. 2. 4. 5. सहसख्ख. B. 2. 4. 5. सहसक्क ( = सहसक्ख ).
१००. D. 2. 4. 6. 8. वासठ्ठि (D. 8 वासठ्ठी) B. 1. 2. 46. वासट्टी (B. 5. वासट्टि).
१२५. D. 1. 2. 4. 6. चउसठ्ठि B. 2-6 सउसट्टि
१४५. D. 2. 4. 6. मरहठ्ठा B. 5-7 मरहट्टा.
५९.
७१.
७७.
D. 2. 4. 6. fag (D. 4. fag) B. 4-6 ft.
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D. 2. 4. 6. hgl B. 4-6 hgl.
D. 2. 4. 6. सोरठ्ठा B. 4-7 सोरट्टा.
D. 146 पिठ्ठा D. 7 पिट्टि B. 1-2 पिट्टि D. 1. 2. 6. रिठ्ठि मुठ्ठि B. 2. 4. 6. रिट्टि मुट्टि
D. 1. 3. 4. वघ्घछाला B. 4. 6. 7. वग्गछल्ला.
D. 1. 3. 4. 6. 7. अठ्ठाराहा B. 2. 4. 6. 7. अट्टाराहा.
८८.
१९९. D. 1. 3. 4. 6. 7. णठ्ठ B. 2. 3. 6. 7. णट्ट ।
पूरबी वर्ग में यह प्रवृत्ति अधिकांश में मूर्धन्य ध्वनियों में ही पाई जानी है; अन्यत्र वग्ग (= वग्घ), सहसक्क (सहसक्ख) जैसे रूप ही मिलते हैं। ऐसे स्थलों पर डा० घोषाल इन दोनों रूपों को वास्तविक न मानकर लिपिशैली का दोष मानते हैं । वे सर्वत्र क्ख, ग्घ, च्छ, ज्झ जैसे रूपों को ही प्रामाणिक मानते है । किन्तु अन्य विद्वानों का यह मत है कि क्ख, ग्घ वाले रूप संस्कृतज्ञ लिपिकारों की देन है तथा प्रामाणिक रूप ख, घ्घ को ही मानना चाहिये । हिंदी के पुराने हस्तलेखों में वे इन्हीं रूपों को अपनाना ठीक समझते हैं । "
प्राकृतपैंगलम् के दोनों प्रकाशित संस्करणों तथा मुझे उपलब्ध हस्तलेखों में इस विषय में एकरूपता नहीं मिलती। निर्णयसागर संस्करण का विशेष झुकाव 'क्ख, ग्घ' जैसे रूपों की ओर है, तो कलकत्ता संस्करण में 'क्ख-ख्ख', 'ज्झइझ' जैसे दोनों तरह के रूप मिलते हैं। हस्तलेखों में भी सर्वत्र एक सा रूप नहीं मिलता तथा एक हस्तलेख में 'क्ख', 'ख' तथा केवल 'ख' जैसे त्रिरूप मिलते हैं। यह निश्चित है कि इन हस्तलेखों में पूरबी हस्तलेखों वाली दोनों ध्वनियों में प्राणता (aspiration) का लोप कर देने की प्रवृत्ति केवल B में दो चार स्थानों पर ही हमारे देखने में आई है। यहाँ हम कतिपय पाठान्तरों की तालिका हमारे हस्तलेखों से दे रहे हैं, जो इस बात का विशेष स्पष्टीकरण कर सकेगी।
कडक्खम्मि (१.४) -C. कखम्मि, D. कडप्यम्मि.
अट्टाइ (१.१३) - A. D. K. अड्डाइ, C. अठ्ठाइ, B अाइ.
हे (१.१४ ) - B. हेठ, C. D. हेठ्ठ. मज्झगुरू (१.३३ ) - A. C. D. मझ्झगुरु. व्अि (१.३७ ) - C. D. K. भि. मेच्छसरीरं (१.७१ ) B. C. D. मेछ,
अट्ठाइस (१.१०५) - B. अट्टावीस, C. अठ्ठाइस
४३३
१. दे० उपर्युक्त लेख पू० ६१ ।
२. यह मत हिंदी के प्रसिद्ध विद्वान् आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र का है, जिन्होंने आपसी बातचीत में अपना मत व्यक्त किया था ।
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