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१.४२] मात्रावृत्तम्
[१९ ४२. अब वर्णोद्दिष्ट बता रहे हैं -
अक्षरों के ऊपर दुगने अंक देने चाहिए, इसे उद्दिष्ट समझो । लघु के ऊपर जो अंक हों उनमें एक देकर (जोड़कर). (उस भेद को) समजो ।
मान लीजिये, चतुरक्षरप्रस्तार का वर्णोद्दिष्ट बताते समय हम चार अक्षर लिख लेंगे-5555, इसके ऊपर दुगने दुगने अंक देंगे 335; अब यदि कोई व्यक्ति यह प्रश्न करे कि चतुरक्षर प्रस्तार के आदि तथा अन्त में लघुवाला भेद कौनसा है, तो हम पहले उसका स्वरूप लिख लेंगे तथा उस पर उक्त अंक देंगे। 33 | इसके बाद लघु के ऊपर के अंक १ तथा ८ जोड़कर इसमें १ और जोड़ देंगे इस तरह १० अंक आयेगा । यही भेद आयेगा ।
मान लीजिये, कोई पूछता है कि एकादशाक्षर प्रस्तार में सर्वलघु वाला कौन सा भेद होगा ? इसकी गणना ऐसे
होगी।
१
२
४
८
१६
३२
६ ४
१२८
२५६
५१२
१०२४
यहाँ हम देखते हैं कि सभी अंक लघु है। अतः इन सभी को जोड़ना होगा, योग होगा २०४७; १ मिलाने पर २०४८ होता है । यही सर्वलघु वाला एकादशाक्षर भेद होगा ।
इस संबध में एक संकेत और कर दिया जाय कि किसी अक्षर प्रस्तार में सब कुल भेद ठीक उतने ही होंगे, जितने उक्त वणिक वृत्त के अंतिम वर्ण पर लिखित द्विगुणित अंक के दुगने होते हैं। जैसे एकादशा भेद २०४८ हैं, तो द्वादशाक्षर के भेद ४०९६ होंगे, त्रयोदशाक्षर के ८१९२ होंगे, इसी तरह सभी तरह के वर्णिक वृत्तों के प्रस्तार की गणना की जा सकती है। उन्नीस वर्ण वाले छंदों का प्रस्तार ५२४२८८ होगा, इक्कीस वर्ण वाले छंदों का प्रस्तार २०९७१५२ होगा।
टिप्पणी-दुण्णा < द्विगुण (रा० दूणा (उ० दूणां) ब० व०) दिज्जहु-विधि (ओप्टेटिव) म०पु०ब०व० ।
मुणेहु-/मुण-(ए) हु आज्ञा० म०पु०ब०व० /मुण' धातु देसी है। दे० 'जो जाणमुणौ' प्राकृतप्रकाश ८.२३. संभवतः इसका संबंध संस्कृत 'मन्' धातु से है, जिसके 'मनुते' रूप में स्वर में वर्णविपर्यय करने पर 'मुणइ'-'मुणेइ' रूप बन जायंगे।
दइ-/द+इ (पूवकालिक क्रियारूप) दे० लेइ ६ ४०-४१ । एक्केण-(एक्क+एण करण कारक: ए० व० विभक्ति)। जाणेहु-Vजाण-(ए) हु आज्ञा म०पु०ब०व० । आसां णटुं,
णढे अंके भाग करिज्जसु । समभागहिँ तहि लहु मूणिज्जसु ।
विसम एक देइ वंटण किज्जसु । पिंगल जंपइ गुरु आणिज्जसु ॥४३॥ [अडिल्ला] ४३. वर्णनष्ट का पता लगाने का ढंग,
नष्ट अंक का भाग करो (आधे बनाओ); समभागों के स्थान पर लघु तथा विषम भागों के स्थान पर गुरु समझो। . विषम में एक देकर जोड़ो । फिर उसे बांटो (आधे बनाओ), इसके बाद उसके स्थान पर गुरु समझो । अंका-0. अंका दुण्णा । दिज्जहु -B. दिज्जसु, D. दिज्जेहु । मुणेहु-B. मगमुणहु, C. मुणहु, D. सुणहु, 0. मुण्णहु । उप्परिC. D. उप्पर । देंइ-C. D. देइ K. दइ, B. अंतिम चरणे 'पेहु सक्ककरणं आणेहु' इति प्राप्यते । ४३. ०. अथ वर्णानां नष्टं । आदौ D. लेखे 'अडिल' इति प्राप्यते । णद्वे C. णढे । समभागहिँ-A. °भाअहँ, C. सारि भागहि, D. सरिस भागहीं, K. सम भागह, 0. समभागहि । तहि-A. तह, D. 'न प्राप्यते' । लहु-०. लहू । मूणिज्जसु-0. मुणिज्जसु । विसम-A. C. D. विसम, K. बिखम । एक-D. एक्क.। देइ-A. दे, C. दै। वंटण-K. बंठण । आणिज्जसु-C. आनिजसु ।
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