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________________ भूमिका ३७३ ये रामचन्द्रभट्ट के प्रपौत्र, नारायणभट्ट के पौत्र तथा रामभट्ट के पुत्र थे । ये लक्ष्मीनाथ भट्ट जाति के ब्रह्मभट्ट जान पड़ते हैं, तथा अनुमान है कि राजस्थान में किसी राजा के आश्रित थे । (३) यादवेन्द्रकृत पिंगलतत्त्वप्रकाशिका :-बिब्लोथिका इंडिका से प्रकाशित संस्करण में यह टीका हस्तलेख H के आधार पर प्रकाशित हुई है। प्रस्तुत हस्तलेख १६९६ शाके (१८३१ वि०) का है। अतः यह टीका इससे पुरानी है, किंतु टीका संभवतः अठारहवीं शती से अधिक पुरानी नहीं जान पड़ती। टीका की पुष्पिका में टीकाकार का परिचय यों दिया है : "अध्यापकनिरपेक्षा पिंगलतत्त्वप्रकाशिका टीका । श्रीयादवेन्द्ररचिता तिष्ठतु विदुषां सदा कण्ठे ॥ श्रीयादवेन्द्रबुधराजेन्द्रदशावधानभट्टाचार्यविरचितायां पिंगलतत्त्वप्रकाशिकायां टीकायां वर्णवृत्ताख्यो द्वितीयः परिच्छेदः समाप्तः ॥" ये यादवेन्द्र, दशावधान भट्टाचार्य के नाम से भी प्रसिद्ध थे, तथा बंगाली ब्राह्मण थे। ये कहाँ के निवासी थे, यह जानकारी अप्राप्त है। (४) कृष्णीयविवरण :-बिब्लोथिका इंडिका वाले संस्करण में एक टीका कृष्णीयविवरण के नाम से भी प्रकाशित की गई है, जिसका मूल आधार हस्तलेख G संकेतित किया गया है । इस टीका के रचनाकार तथा रचनाकाल के विषय में कोई जानकारी नहीं है। केवल इतना जान पड़ता है कि रचनाकार कोई कृष्ण है। सम्भवतः ये कृष्ण 'वंशीधरी' टीका के रचयिता वंशीधर के पिता ही हों, जिनका हवाला वंशीधर की टीका में मिलता है। यदि ऐसा है, तो यह टीका भी काशी में ही १७वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में लिखी गई थी। (५) वंशीधरकृत पिंगलप्रकाशटीका :-ये वंशीधर काशी के निवासी तथा जगदीश के पौत्र, और कृष्णदेव के पुत्र थे । इनके पिता तथा पितामह भी बहुत बड़े पंडित थे ।२ 'प्राकृतपैंगलम्' का अध्ययन वंशीधर ने अपने पिता से ही किया था, तथा उसी आधार पर १६९९ वर्ष में (विक्रम अथवा शक संवत् स्पष्ट नहीं है, संभवतः यह विक्रम संवत् ही है) आषाढ शुक्ल प्रतिपत् चन्द्रवार को यह टीका समाप्त हुई थी। वर्षे नन्दनवर्तुचन्द्रमिलिते (१६९९) आषाढमासे सिते, पक्षे चन्द्रदिने तिथौ प्रतिपदि श्रीचन्द्रमौलेः पुरे । तातात्सम्यगधीत्य तेन रचिता सेयं प्रकाशाभिधा भाषा पिंगलटिप्पनी रघुपतेानात् समाप्तिं गता ॥ यह टीका E हस्तलेख के आधार पर वहीं प्रकाशित हुई है। (६) विश्वनाथपञ्चाननकृत पिंगलटीका :- इस टीका का प्रकाशन C हस्तलेख के आधार पर हुआ है, जो वंगीय अक्षरों में है। टीकाकार बंगाली ब्राह्मण थे, किंतु अन्य विवरण अप्राप्त हैं । टीका की पुष्पिका से केवल इतना ज्ञात होता है कि ये म० म० विद्यानिवास के पुत्र थे "इति महामहोपाध्यायविद्यानिवासात्मज-विश्वनाथपञ्चाननकृता पिंगलटीका समाप्ता ॥" १. भट्टश्रीरामचन्द्रः कविविबुधकुले लब्धदेहः श्रुतो यः, श्रीमन्नारायणाख्यः कविमुकुटमणिस्तत्तनूजोऽजनिष्ट । तत्पुत्रो रामभट्टः सकलकविकुलख्यातकीर्तिस्तदीयो लक्ष्मीनाथस्तनूजो रचयति रुचिरं पिङ्गलार्थप्रदीपम् ।। (काव्यमाला सं० पृ० १) २. क्षीणींपालकमौलिरत्नकिरणस्फूर्ज़त्प्रभाराजिताम्, अम्भोजद्वितयः परास्तगणनांतेवासिसंसेवितः ।। सद्विद्याकवितालताश्रयतरुस्तेजस्विनामग्रणीर्जातः श्रीजगदीश इत्यभिहितो नाम्ना तदीयः सुतः ॥ स्फूर्जब्राह्मण्यतेजःकरनिकरसमुद्भूतदिग्जालपूज्यः श्रीकृष्ण [?] जपनियमविधिध्वंसिताशेषपापः । आयुर्वेदार्थदीक्षागुरुरतिसुमतिः शब्दविद्याप्रवीणो जातः पुत्रस्तदीयो विमलतरयशाः कृष्णदेवाभिधानः । साहित्याम्भोधिपारेगतविमलमतिर्जानकीशांघ्रियुग्मध्यानासक्तान्तरात्मा यमनियमयुतस्तर्कविद्यानुरक्तः । जातो वंशीधराख्यस्त्रिभुवनविलसत्कीर्तिचन्द्रस्य तस्य स्वीयप्रौढप्रतापानलकिरणसमुत्तापितारेस्तनूजः ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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