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________________ ३६९ भूमिका इह च्छन्दोऽनुरोधेन वर्णानां गुरुलाघवम् । (प्रा० स० सूत्र १७-८) यथा, अररे वाहइ काण्ह नाव छोडी डगमग कुगति ण देहि ।। तुहं एहं णइ संतार देइ जं चाहसि तं लेहि ॥ (प्रा० पि० १-५) (२) प्रकृतिप्रत्ययसंधिर्लोपविकारागमाश्च वर्णानाम् । सुब्लुक् सुपां तिडां वा विपर्ययश्चात्र बहुलं स्युः ॥ (प्रा० स० १७-५६) यथा पिंगलगज्जउ मेह कि अंबर सामर, फुल्लउ णीव कि भम्मउ भम्मर । एकलि जीअ पराहिण अम्हह, की लउ पाउस कीलउ वम्मह ॥ (प्रा० पि० २ । १४२) सुब्विपर्ययो यथा पिंगले-'माणिणि माणिहिं काई फल' (प्रा० पि०१-४) (३) परस्मैपदमेवात्र । (प्रा० स० १७-५७) नागरापभ्रंशे आत्मनेपदं नास्तीत्यर्थः । पठइ । वढुइ । दिज्जइ । तत्तु पिंगलेलहू गुरु णिरन्तरा पमाणि अट्ठ अक्खरा । पमाणि दोण्णि दिज्जए णराअ सो भणिज्जए ॥ (पा० पि० २-६९) इत्यत्र दिज्जए, भणिज्जए इत्यात्मनेपदम् तन्महाराष्ट्रयपभ्रंशमूलसंकीर्णभाषया; अत्रोक्तवर्णविकारेण वा समाधेयम् । मार्कंडेय के समय के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत हैं। पिशेल ने मार्कंडेय का समय १५ शती माना है'; जब कि इतालवी विद्वान् नित्ती दोल्चि (Nitti Dolci) ने मार्कंडेय को साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ (१४वीं शती) से भी पुराना माना है । प्रो० गुणे ने मार्कंडेय को उड़ीसा के राजा मुकुंददेव (१६६४ ई० ल०) का समसामयिक माना है', तथा ग्रियर्सन भी उन्हें १७वीं शती का ही मानते हैं। इस प्रकार भी 'प्राकृतपैंगलम्' इस समय तक अत्यधिक ख्याति प्राप्त ग्रन्थ हो चुका था। उपर्युक्त विवरणों से स्पष्ट है कि 'प्राकृतपैंगलम्' की उपरितम सीमा हम्मीर (१३०१ ई०) तथा निम्नतम सीमा दामोदर (१४०० ई०) है। इस समयसीमा को और कम करने पर हम कह सकते हैं कि 'प्राकृतपैंगलम्' का संग्रहकाल हरसिंहदेव तथा हरिब्रह्म के समय से कुछ ही पुराना है, तथा यह चौदहवीं शती का प्रथम चरण मजे से माना जा सकता प्राकृतपैंगलम् का संग्राहक कौन ? ७ प्राकृतपैंगलम् के संग्राहक का पूरी तरह पता नहीं चल पाता । अन्धविश्वास के अनुसार यह भी शेषावतार पिंगल की ही रचना है, किन्तु यह मत किंवदंतियों तथा गपोड़ों पर आधृत है, और वैज्ञानिक दृष्टि से त्रुटिपूर्ण है । लक्ष्मीनाथ की टीका में 'पिंगल' को भाषाकाव्य का पहला कवि माना गया है। "संस्कृते त्वाद्यकविर्वाल्मीकिः । प्राकृते शालिवाहनः । भाषाकाव्ये पिंगलः ।"५ तो, क्या 'पिंगल' किसी भाषाकवि का उपनाम है, तथा उसने यह संग्रह किया है ? विश्वनाथ पंचानन कृत पिंगलटीका में एक स्थान पर इसका रचयिता हरिहरबन्दी माना गया है। मात्रावृत्त के ११५वें पद्य की टीका में यह संकेत मिलता है : १. Pischel : Prakrit Sprachen $ 40 R. Nitti Dolci : Prakrit Sarvasva. (Introduction) ३. Gune : Bhavisattakaha. pp. 67-68 8. Grierson : Eastern School of Prakrit Grammarians and Paisachi (Sir Ashutosh Mukherjee Silver Jubilee Vol. 1925, p. 122) ५. प्राकृतपिंगलसूत्राणि (काव्यमाला) पृ० २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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