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भूमिका
६१. पिछले छह दशकों से 'प्राकृतपैंगलम्' पाश्चात्य एवं भारतीय विद्वानों के आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। काव्यमाला सं० ४१ में सन् १८६४ में 'प्राकृत-पिंगल-सूत्राणि' के नाम से प्रकाशित किये जाने के बाद से लेकर आज तक इसके संग्राहक, संग्रह-काल तथा भाषा पर इतस्तत: कुछ छुटपुट विचार प्रकट किये गये हैं । रिचर्ड पिशेल, श्री चन्द्रमोहन घोष, प्रो. हर्मन याकोबी, शूबिंग', डा. टेसिटोरी', श्री विजयचन्द्र मजूमदार, डा. सुनीतिकुमार चाटुा , डा. गुणे, श्री डी.सी. गांगुलि', म० म० हरप्रसाद शास्त्री०, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, राहुल सांकृत्यायन,९२ डा० एस० एन० घोषाल१३, डा० हजारीप्रसाद द्विवेदी१४, डा० कोछड'५, डा० तिवारी१६ आदि विद्वानों ने अपने ग्रन्थों तथा लेखों में 'प्राकृतपैंगलम्' का जिक्र किया है तथा इधर भी कुछ नये गवेषक छात्र 'प्राकृतपैंगलम्' का इतस्ततः संकेत करते देखे जा रहे हैं । इसके अतिरिक्त प्रो० ज्यूल ब्लॉख ने भी अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'लादो-आयौँ' (भारतीय आर्य-भाषा) में 'प्राकृतपैंगलम्' का नामनिर्देश किया है ।१७ भाषाशास्त्रीय दृष्टि से 'प्राकृतपैंगलम्' की ओर सर्वप्रथम ध्यान देने वाले विद्वान् रिचर्ड पिशेल हैं, जिन्होंने अपने महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ 'प्राकृत स्प्राखेन' की रचना में हेमचन्द्रोत्तर अपभ्रंश या अवहट्ट के रूप में इस ग्रंथ का समुचित उपयोग किया था, जो उनके ग्रन्थ के आद्योपान्त अनुशीलन से दृग्गोचर होता है । 'प्राकृतपैंगलम्' की ओर पिशेल से भी पूर्व दो अन्य जर्मन विद्वानों का भी ध्यान आकृष्ट हुआ था । बोलेनसेन ने अपने 'विक्रमोर्वशीय' के संपादित संस्करण के परिशिष्ट में 'प्राकृतपैंगलम्' का कतिपय अंश प्रकाशित कराया था तथा गोल्दस्मिद्त ने भी इसका संस्करण निकालने का कार्य आरंभ किया था। बाद में डा० हर्मन याकोबी की देखरेख में श्रीटोडरमल्ल ने भी 'प्राकृतपैंगलम्'
१. Pischel : Prakrit Sprachen $$ 28-29, pp. 29-30. (1900) २. प्राकृतपैंगलम् (Biblio. Indica ed.) (Introduction) p. VII (1902) ३. Jacobi : Bhavisattakaha (Introduction) p. 45, (German ed.) : Sanatkumarcharitam (Introduction)
(Eng. trans. published in the Journal of the Oriental Research Institute of M.S. Univ. of Baroda,
vol. VI. pt. 2-3. p. 95) 8. Zeitschrift der Deutschen Morgenlandischen Gesellschaft. Band. 75 (1921) S. 97 4. Dr. L. P. Tessitori : Notes on Old Western Rajasthani. (Indian Antiquary, 1914-16) ६. B. C. Majumdar : History of the Bengali Language. Lecture XI pp. 248-256. साथ ही Dr. D. C.
Sen : Bengali Language and Literature. p. 57 ७. Dr. S. K. Chatterjea : Origin and Development of Bengali Language. Vol. I. p. 114. साथ ही डा०
चाटुा : भारतीय आर्यभाषा और हिंदी पृ. १०६. (राजकमल, १९५४) 6. Dr. Gune : Bhavisattakaha. (Introduction). p. 69. (G.O.S. Baroda, 1923) ९. D. C. Ganguli : Indian Historical Quarterly. vol. XI. p. 565 १०. Mm. H. P. Sastri : Priliminary Reports on the Operation in Search of Mss. of Bardic Chronicles
(Asiatic Society of Bengal) p. 18 ११. आचार्य शुक्ल : हिंदी साहित्य का इतिहास, पृ. २५ (आठवाँ संस्करण) १२. राहुल सांकृत्यायन : हिंदी काव्यधारा पृ. ३१४-३२६, पृ. ३९६-३९८, ४५१-४५५, ४५७-४६६ 83. Dr. S. N. Ghosal : The Date of Prakrit-paingalam. (1. H. Q. XXV. I. p. 52-57) १४. डा० द्विवेदी : हिंदी साहित्य का आदिकाल पृ० ५ तथा पृ० ४३-४७. (१९५२ सं०), हिन्दी साहित्य पृ० ६ तथा पृ०
७३ (१९५२ संस्करण) १५. डा० कोछड : अपभ्रंश साहित्य १६. डा० उदयनारायण तिवारी : हिन्दी भाषा का उद्भव और विकास पृ० १४८-१५० १७. Jules Bloch : L' Indo-Aryen. (du Veda aux temps modernes) p. 12. (Paris, 1934) १८. Pischel. $ 21. p. 30. (German ed.)
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