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२.१८७]
वर्णवृत्तम्
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२०९. उदाहरण:किसी राजा के युद्ध के लिए प्रस्थान करते समय की सज्जा का वर्णन है :
राजा (प्रभु) ने रणवाद्य (के बजाने की आज्ञा) दे दी, (अथवा प्रभु ने वज्र-हीरों) से युक्त टोप को सिर पर सजाया तथा हाथ में कंकण एवं सिर पर किरीट धारण किया, रविमंडल के समान कुण्डलों को दोनों कानों में पहना तथा वक्षःस्थल पर जाज्वल्यमान हार स्थापित किया, प्रत्येक अंगुली में हीरों की मुंदरी धारण की, तथा स्वर्णविद्युत् के समान सुंदर शरीर को सुसज्जित किया । किरीट छंदःठावहु आइहि सक्कगणा तह सल्ल विसज्जहु बे वि तहा पर,
णेउर सद्दजुअं तह णेउर ए परि बारह भव्व गणा कर । काहलजुग्गल अंत करिज्जसु ए परि चोबिस वण्ण पआसहु,
बत्तिस मत्त पअप्पअ लक्खहु अट्ठ भआर किरीट विसेसहु ॥२१०॥ २१०. किरीट छन्द का लक्षण:
आरंभ में एक शकगण (15) स्थापित करो, उसके बाद दो शल्य (लघु) दो, उसके बाद एक नुपूर (गुरु) तथा बाद में दो शब्द (लघु) तथा फिर एक नुपूर (गुरु)-इस परिपाटी से बारह गणों की रचना करो । अंत में दो लघु (दो काहल) करना चाहिए, तथा इस प्रकार २४ वर्गों को प्रकाशित करो । प्रत्येक चरण में ३२ मात्रा लिखो, तथा किरीट छंद को आठ भकार से विशिष्ट बनाओ ।
(किरीट छंदः-5॥x८) टिप्पणी-ठावह-स्थापयत (Vठाव+हु, आज्ञा म० पु० ब० व०)
आइहि-< आदौ, (आइ+हि, सप्तमी ए० व०)। विसज्जहु-< वि+सर्जयत (वि+/सज्ज+हु, आज्ञा म० पु० ब० व० । णेउर-< नूपुर, ('एन्नुपुरे' प्रा० प्र०) । करिज्जसु-< कुर्याः, Vकर+इज्ज+सु, विधिलिङ् म० पु० ए० व० । पआसहु-< प्र+काशयत > प+आस (=काश)+हु । म० पु० ब० व० । बत्तिस-(=बत्तीस) द्वात्रिंशत् (छन्दोनिर्वाहार्थ 'ई' का ह्रस्वीकरण) । पअप्पअ-(=पअ पअ) (छन्दोनिर्वाहार्थ द्वितीय 'प' का द्वित्व) ।
जहा,
वप्पह उक्कि सिरे जिणि लिज्जिअ तेज्जिअ रज्ज वणंत चले विणु, सोअर सुंदरि संगहि लग्गिअ मारु विराध कबंध तहा हणु । मारुइ मिल्लिअ बालि विहंडिअ रज्ज सुगीवह दिज्ज अकंटअ,
बंधि समुह विणासिअ रावण सो तुह राहव दिज्जउ निब्भअ ॥२११॥ [किरीट] २११. किरीट छंद का उदाहरण निम्न है:जिन्होंने पिता की उक्ति (आज्ञा) को सिर पर लिया, जो राज्य को छोड़कर भाई एवं पत्नी (सुन्दरी) को साथ
२१०. भव्य-N. सक्क । चोविस-C. चउविह, B. N. चौविस, K. चोबिह । बत्तिस-C. व बत्तीस । लेक्खहु-M. लेखउ । भआर-N. अआर । २१०-C. २१३, M. २७९ । २११. उक्कि-N. भत्ति, C. पव्वअ दृकि करे, 0. भक्ति । तज्जिअ रज्ज-N. रज्ज विसज्जि । लग्गिअ-N. लग्गि इकल्लिअ । हणु-N. धर । बिहंढीअ-N. बहल्लिअ । रज्ज-N. रज्जु । दिज्जN. दिज्जु । अकंटक-N. अकट्टअ । सुगीवह-B. सुगीवहि, 0. सुगीउहि । बंधि-N. B. बंधि, C. K.O. बंधु । समुहN. समुन्द । विणासिअ-N. विधालिअ, C. विभालिअ । तुह-N. तुम, O. तुअ । णिब्मअ-C. K. णिम्भ। २११-C. २१४, N. २८० ।
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