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________________ १६०] प्राकृतपैंगलम् [२.१९० पाम्म-< पद्म > पउम > पाम्म । लग्गिआ-< लग्नाः, कर्मवाच्य भूतकालिक कृदन्त, Vलग+इअ । गंडका छंद:रग्गणा पलंतआ पुणो णरेंद कंतआ सुछक्कएण, हार एक्क मंतही सुसद्द पाअ अंतही सुसक्कएण । गंडआ गणेहु ए सुवण्ण संख बीसए फणिंद गाउ, तीस मत्त पाअ पत्त हार तीअ भाअए सुसद्द आउ ॥१९८॥ १८९. जहाँ प्रत्येक चरण में पहले रगण पड़े, फिर सुंदर नरेंद्र (जगण) पड़े, इस तरह छः गण हो, (अर्थात् एक रगण फिर एक जगण, फिर एक रगण, जगण, फिर एक रगण, एक जगण पड़े), चरण में अंत में एक हार (गुरु) दो, तथा फिर सुंदर शब्द (लघु) अपने शक्ति के अनुसार दो । इसे गंडका छंद गिनो (समझो), इसमें संख्या में बीस वर्ण होते हैं, प्रत्येक चरण में ३० मात्रा होती है, इसमें तीसरा भाग (१/३ वर्ण) अर्थात् दस वर्ण हार (गुरु) होते हैं, शेष लघु होते हैं। (गण्डका :-515, 151, 515, ISI, SIS, ISI 5, । = २० वर्ण, ३० मात्रा १० गुरु+१० लघु=३० मात्रा) । टिप्पणी-अंतही अंतहि, छन्दोनिर्वाहार्थ पदांत 'इ' का दीर्धीकरण । < अंते । अधिकरण ए० व० का रूप 'हि' विभक्ति । भाअए < भागेन (=भागकेन) करण ए० व० 'ए' विभक्ति । जहा, ताव बद्धि ताव सद्धि ताव दाण ताव माण ताव गव्व, जाव जाव हत्थ णच्च विज्जुरेह रंग णाइ एक्क दव्व । एत्थ अंत अप्प दोस देव रोस होइ णट्ट सोइ सव्व, कोइ बुद्धि कोइ सुद्धि कोइ दाण कोइ माण कोइ गव्व ॥१९९॥ [गंडका] १९९. उदाहरण: बुद्धि तभी तक है, शुद्धि तभी तक है, दान तभी तक है, मान तभी तक है और गर्व भी तभी तक है, जब तक कि हस्ततल में बिजली की रेखा के समान अकेला द्रव्य नाचा करता है। यदि वही द्रव्य अपने दोष से या दैवरोष से नष्ट हो जाता है, तो बुद्धि क्या है, शुद्धि क्या है, दान क्या है, मान क्या है, और गर्व क्या है ? टिप्पणी-ताव < तावत्, जाव < यावत् । विज्जुरेह < विद्युत्रेखा । अपभ्रंश में स्त्रीलिंग आकारांत शब्दों में अकारांतता पाई जाती है, दे० भूमिका । एकविंशत्यक्षर प्रस्तार, स्रग्धरा छंद : बे कण्णा गंधहारा वलअ दिअगणा हत्थहरा पलंता, एक्काला सल्ल कण्णा धअपअसहिआ कंकणा अंत कंता । बीसा एक्कग्गला जं पलइ लहु गुरु बारहा होइ दीहा, पिंडा बत्तीस अग्गा सउ फणि भणिआ सद्धरा होइ मुद्धा ॥२००॥ १९८. सुछक्कएण-C. सुर्छदएण । हास्-A. B. हारु । मंतही-N. दिज्जही । अंतही-N. किज्जही। ए.... गाउ-N. एहु वङ्कसङ्घसङ्खले फणिन्द गाउ । बीसए-C. कंकणे । पाअ-A. B. पाउ । 'भाअएण-N. °भागए सुसद्द । १९८-C. २०१, N. २५५ । १९९. बुद्धि-A. B. सुद्धि । सुद्धि-A. B. बुद्धि । जाव जाव-A. B. जाव । हत्थ.....दव्व C. ताव सव्व हत्थ णच्च सव्व विज्जु रंग एक्कु दप्प, N. जाव जाव हत्थ तल्ल णच्च सव्व विज्जुरेह एक्क दव्व । देव-A. दैव । १९९-C. २०२, N. २५६ । २००. पलंता-C. वलंता । एक्काला-C. एकण्णा, N. एकल्ला । धअपअ-N. घअगण० । कंकणा-C. संखआ । बीसा...गुरूN. वीसा एकग्ग वण्णा पअहि लहु णवा । बारहा-N. वारहा । मुद्धा-C. N.O. सुद्धा । २००-C. २०३, N. २६१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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