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________________ २.१८७] वर्णवृत्तम् [१५७ धवलाछंदः. करिअ जसु सु गुण जुअ विमलमइ महिअले, ठइअ ठइ रमणि सरसगण पअ पअ पले । दिअगण चउ चउपअहि भण फणिवइ सही कमल गण सरसमण सुमुहि धवलअ कही ॥१९२॥ १९२. हे सरस मन वाली, हे सुमुखि, हे रमणि, जिस छंद के प्रत्येक चरण में पड़नेवाले सरस गण वाले चार द्विजगण (चार चतुष्कल) स्थापित कर अन्त में कमल गण (सगण) चारों चरणों में किया जाय, उस छन्द को निर्मल बुद्धिवाले फणिपति ने पृथ्वीतल पर धवला कहा है। (धवला :-III I, III, II, III, Is = १९ वर्ण) टि०-करिअ-कर्मवाच्य रूप 'क्रियते' । < क्रियते-> करिअइ > करिअ । ठड़अ-< स्थापयित्वा, पूर्वकालिक क्रिया रूप (Vठा+इअ) । पले-पतितान्, 'ए' कर्ता कर्म ब० व० का विभक्ति चिह्न है । सही-(ही० राज० सही) । धवलअ-< धवलकं । जहा, तरुण तरणि तवइ धरणि पवण वह खरा, लग णहि जल बड मरुथल जणजिअणहरा । दिसइ चलइ हिअअ इलइ हम इकलि वह, घर णहि पिअ सुणहि पहिअ मण इछइ कहू ॥१९३॥ [धवला १९३. उदाहरण:कोई स्वयंदूती पथिक से कह रही है: तरुण (मध्याह्न) सूर्य पृथ्वी को तपा रहा है, तीक्ष्ण पवन चल रहा है, पास में पानी भी नहीं हैं, लोगों के जीवन का अपहरण करने वाला यह बहुत बड़ा मरुस्थल है, दिशायें भी जैसे घूम रही हैं, हृदय डोल रहा है, और मैं अकेली बहू हूँ, प्रिय घर पर नहीं है । हे पथिक, सुन, कहीं तेरा मन (ठहरना) चाहता है क्या ? (अथवा हे पथिक, सुन अपने मन की इच्छा को कह ।। टि०-लग-< लग्नं (समीप में) । एक टीकाकार ने इसे मैथिली प्रयोग माना है-'लग इ [ति निकटवाचको मिथिलादेशीयः ।-दे० कलकत्ता संस्करण पृ. ५४३ । हिअअ-2 हृदयं । डुलइ-< दोलायते (मूलतः नाम धातु), Vडुल+इ वर्तमान प्र० पु० ए० व०; हि० डोलना । इकलि-< एकला, (एकल: से स्त्रीलिंग रूप)। सुणहि-< श्रृणु । इछइ कहू-(१) इच्छां कथय, (२) इच्छया कथय, (३) इच्छति कुत्र । एक हस्तलेख ने 'इछल कहू' पाठ माना १९२. करिअ.....अले-C. पलइ वसु लहु जुअल विमल मइ महिअले, N. करइ वसु सुणि जुवइ । रमणि सरसगण-C. रमण गति सअण । पअहि-C. पअह, N. पअहिं । सही-C. मही। कमल गण -C. कर अगण सरिसउ ससिवअणि धवलही । १९३. तवइ-C. तप । वह-A. बहइ । जणजिअणहरा-0. जणजिउणहरा । दिसइ चलइ-C. वसइ लोलइ । डुलइ-C. तोलइ। हम-C. हमे एकलि, 0. हमे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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