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________________ उत्तराधिकारी होने का दावा कर सकते हैं।' 'प्राकृतपैंगलम्' के अध्ययन में प्रमुख बाधा इसके व्यवस्थित संपादित संस्करण के अभाव की थी। बिब्लोथिका इंडिका तथा निर्णयसागर वाले (बहुत पुराने पड़े) संस्करणों के बावजूद हिन्दी पाठक के लिए यह दुरंत और दुर्गम कान्तार था। मैने इसके व्यवस्थित संपादित संस्करण की आवश्यकता का अनुभव कर नये मिले हस्तलेखों के आधार पर नये सिरे से संपादन कर पाठकों की सुविधा के लिये हिन्दी व्याख्या और भाषाशास्त्रीय व्युत्पत्तिपरक टिप्पणियाँ देना जरूरी समझा । अतः ग्रंथ के प्रथम भाग में इसका सुसंपादित संस्करण, व्याख्या, टिप्पणी, प्रमुख संस्कृत टीकायें और शब्दकोष का प्रकाशन किया गया है । आशा है, इससे यह ग्रन्थ हिंदी भाषा और साहित्य के अनुसंधित्सुओं के लिए अधिक सुलभ हो सकेगा। प्राकृतपैगलम् के अनुशीलन तथा संपादित संस्करण में मुझे पिशेल, याकोबी, डा० चाटुा, डा० भायाणी, डा० वेलणकर, डा० टगारे जैसे अनेक विद्वानों के बहुमूल्य विचारों से सदा प्रेरणा मिलती रही है; मैं उनका कृतज्ञ हूँ । इस ग्रंथ को प्राकृत टेक्स्ट सोसायटी से प्रकाशित कर आदरणीय पं० दलसुखभाई मालवणिया तथा श्रद्धेय डा० वासुदेवशरण अग्रवाल ने जो स्नेह और कृपा प्रदर्शित की, उसके लिये मैं हृदय से उनका आभारी हूँ। पिछले पाँच वर्ष से 'प्राकृतपैंगलम्' संबंधी शोध-खोज में जुटे रहने पर भी, इस गंभीर और बहुमुखी विषय के साथ पूरी तौर पर न्याय करने में त्रुटि हो जाना स्वाभाविक है, इसलिये मैं भाषाशास्त्र तथा छंदःशास्त्र के अधिकारी विद्वानों के सुझावों का सदा स्वागत करूँगा। भोलाशंकर व्यास [14] For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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