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________________ [२.८१ १२०] प्राकृतपैंगलम् टिप्पणी-जणिअं< जनित: > जणिओ < जणिउ > जणिअ । इसी 'जणिअ' को छंदोनिर्वाहार्थ 'जणि' बना दिया गया है । जहा, फुल्ला णीवा भम भमरा दिट्ठा मेहा जलसमला । - णच्चे विज्जू पिअसहिआ आवे कंता कहु कहिआ ॥८१॥ [पाइत्ता] ८१. उदाहरण: हे प्रियसखि, कदम्ब फूल गये हैं, भौरे घूम रहे हैं, जल से श्यामल मेघ दिखाई दे गये हैं, बिजली नाच रही है, कहो प्रिय कब आयेंगे ? टिप्पणी-समला < श्यामलाः > सामला > सावला (अप०) । वस्तुतः इस मध्यग 'म' का विकास 'वं होता है। 'समला' (सावला) को छन्दोनिर्वाह के लिए 'समला' बना दिया है। (तु० राज० साँवळो, ब्रज० साँवरो) इस संबंध में इतना संकेत कर दिया कि 'V' के नासिक्य तत्त्व (नेजल एलिमेंट) का प्रभाव पूर्ववर्ती तथा परवर्ती स्वरों पर भी पाया जाता है। प्रा० ० के सावला (बर्तनी, सामला) का उच्चारण साँवला (sawla) रहा होगा, यह उच्चारण आज भी राज० में सुरक्षित है। णच्चे < नृत्यति, वर्तमानकालिक प्र० पु० ए० व० । आवे । आयाति; भविष्यत् के अर्थ में वर्तमानकालिक प्रयोग-आगमिष्यति-(आयास्यति) प्र० पु० ए० व० । कंता < कांतः, छंदोनिर्वाहार्थ पदांत 'अ' का दीर्धीकरण । कहु < कथय, अनुज्ञा म० पु० ए० व० । कहिआ < कदा। कमल छंद : सरसगणरमणिआ दिअवर जुअ पलिआ । गुरु धरिअ पइपओ दहकलअ कमलओ ॥८२॥ ८२. जहाँ प्रत्येक चरण में सरसगण से रमणीय (सुंदर गणवाले) दो द्विजवर (चतुर्लघ्वात्मक गण) पड़ें, अंत में गुरु धरा गया हो, तथा दस मात्रा हो, (वह) कमल छंद है। (कमल :-II, IIII, 5) टिप्पणी-पलिआ < पतितः > पडिओ > पडिअ > पडिल । छन्दोनिर्वाहार्थ पदांत 'अ' को दीर्घ बना दिया गया । कर्मवाच्य भूत०-कृदंत । धरिअ-2 धृतः > धरिओ > धरिउ-धरिअ । कर्मवाच्य भूत०-कृदंत । जहा, . चल कमलणअणिआ खलिअथणवसणिआ । हसइ परणिअलिआ असइ धुअ वहुलिआ ॥८३॥ [कमल] ८३. उदाहरण: चंचल कमल के समान नेत्रों वाली बहू जिसके स्तन का वस्त्र खिसक रहा है, दूसरों के समक्ष हँसती है, तो वह निश्चय ही असती (दुश्चरित्र) है। टिप्पणी-परणिअलिआ-< परनिकटे, यहाँ छन्दोनिर्वाहार्थ 'अ' को जोड़ा गया है। वस्तुतः 'परणिअलि' ('इ' अधिकरण ए० व० की विभक्ति) ही मूल शब्द है। णिअल, तु० 'नियर (अवधी), जेहि पंछी के नियर होइ कहै बिरह कै बात (जायसी)। ८१. फुल्लम-C. फुल्लो । णीवा-A. णीपा । जलसमला-C.O. °समरा, N. जलसभरा । कहु-N.O. सहि । कहिआ-B. सहिआ। ८२. सरस-C. सुपिअ । दिअवस्-C. N. दिअगण । पलिआ-C. अ पलिआ । गुरु .. पओ-C. सअलगण पइ पओ, N. "पइ पउ। ८३. कमल -C. चवलणअणआ । खलिअ-C. खलइ । वसणिआ-C. K. वसणआ । असइ-B. लसइ । धुअ-A. धुव । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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