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१०४] प्राकृतपैंगलम्
[२.२१ मृगेन्द्र छंदः
णरेंद ठवेहु ।
मिएंद कहेहु ॥२१॥ २१. नरेन्द्र (जगण, मध्यगुरु) की स्थापना करो, इसे मृगेन्द्र नामक छंद कहो । (15) टि०-ठवेहु, कहेहु-(स्थापयत, कथयत) आज्ञा म० पु० ब० व० । जहा,
दुरंत वसंत ।
स कंत दिगंत ॥२२॥ मृगेन्द्र] २२. उदाहरण:कोई प्रोषितपतिका सखी से कह रही है :-यह कठोर वसंत (आ गया है), वह प्रिय दूर देश (में है)। मंदर छंदः
भो जहि सो सहि।
मंदर सुंदर ॥२३॥ २३. हे सखि, जहाँ भगण (आदिगुरु) हो, वह सुंदर मंदर छंद है। टिo-जहि-< यत्र ।
जहा,
सो हर तोहर ।
संकट संहर ॥२४॥ [मंदर] २४. उदाहरण:वह शंकर तुम्हारा संकट हटावें (तुम्हारे संकट का संहार करें) । टिo-तोहर-2 तव; इससे संबद्ध रूप पूर्वी हिंदी में पाये जाते हैं । तु० दे० अवधी'तहँ तोहार-मई कीन्ह बखानू' (जायसी) तोर कहा जेहि दिन फुर होई (तुलसी) आवन भयेउ तोहार (नूरमुहम्मद) ।
दे० डॉ. सक्सेना $ २३७ (सी) पृ. १६७ । साथ ही कथ्य रूप-लखमपुरी अवधी 'तोर कूकर मरि गा' (वही १ २३८) ।
मैथिली के लिए, तु० 'तोहर वचन' (विद्यापति), दे० डॉ. झाः विद्यापति (भूमिका) पृ. १५६-५७ ।
भोजपुरी के कथ्यरूप के लिए तु० तोर्, तुहार् (गोरखपुरी भोजपुरी), तोर, तुहार (बनारस, मिर्जापुर, आजमगढ़), तोर्, तोहर् (नगपुरिया या सदानी) । इनके विकारी रूप तोर-तोहरा (साथ ही कहीं कहीं 'तुहरा') पाये जाते हैं । दे० डॉ० तिवारी : भोजपुरी भाषा और साहित्य 8% ३८९-३९१ । कमल छंदः
कमल पभण ।
सुमुहि णगण ॥२५॥ २५. हे सुमुखि, (जहाँ) नगण (सर्वलघु हो), उसे कमल छंद कहो । (।।।)
जहा,
२१. करेहु-A. B. कहेहु । मइंद-N. मिएंद । २२. स कंत-C. N. सु कंत । 0. सुकंत । २३. भो-C. जो । सुंदर-A.
सुंदर ।
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