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________________ १००] प्राकृतपैंगलम् [२.५ मधु छंदः लहु जुअ । महु हुअ ॥५॥ ५. (जहाँ) दो लघु (हों), (वह) मधु छंद होता है । (11) जहा, हर हर । मम मल ॥६॥ (मधु) ६. उदाहरण :-हे शिव, मेरे पापों (मल) को हरो । टिप्पणी-मम । उत्तम पुरुषवाचक सर्वनाम संबंधकारक ए० व० । यह प्रा० भा० आ० रूप है, जिसका अपरिवर्तित रूप प्राकृत (दे० पिशेल $ ४१५) तथा अपभ्रंश में (दे० तगारे 8 ११९ अ) भी पाया जाता है। हर-आज्ञा, म० पु० ए० व० । मल < मलं, कर्म ए० व० रूप । मही छंदः लगो जही। मही कही ॥७॥ ७. जहाँ क्रम से लघु तथा गुरु (अक्षर हों), वह मही छंद कहा गया है । (15) टिप्पणी-जही 2 यत्र । कही र कथिता > कहिआ > कहिअ > कही, कर्मवाच्य भूत० कृदंत, 'स्त्रीलिंग' । जहा सई उमा । रखो तुमा ॥८॥ [मही] ८. उदाहरणः-सती उमा (पार्वती), तुम्हारी रक्षा करे । टिप्पणी-रखो, दे० रकखो (२-२) संयुक्ताक्षर या द्वित्व व्यंजन का सरलीकरण अवहट्ट (आद्य आ० भा० आ० भाषा) की खास प्रवृत्ति है। इसके लिए प्रायः पूर्ववर्ती स्वर का दीर्धीकरण पाया जाता है, पर कभी इसे दीर्घ नहीं भी बनाया जाता । अपभ्रंश रक्ख के स्वर का दीर्धीकृत रूप रा० में राख के रूप में मिलता है। वहाँ आज्ञा म० पु० ए० व० 'राखो' होगा । तुमा < त्वा । 'तुम' को 'उमा' की तुक पर 'तुमा' बना दिया गया है । 'तुम' मध्यम 'पुरुषवाची सर्वनाम' का कर्ता कर्म कारक ए० व० का रूप है :-तु० प्राकृत तुम, तुं अप० 'तुम' । (दे० तगारे $ १२० अ) इसी 'तुम' का अवहट्ट रूप 'तुम' (>तुमा) है। सारु छंदः सारु एह । गो वि रेह ॥९॥ ९. (जहाँ) गुरु और लघु (रेखा) हों, यह सारु छंद है । (51) टिप्पणी-एह-प्रत्यक्ष उल्लेखसूचक सर्वनाम । हेमचंद्र में 'एह' रूप मिलता है। साथ ही अप० में 'एहु' रूप भी मिलता है, जिसकी उत्पत्ति पिशेल ने *एषं' से मानी है (दे० पिशेल ६ ४२६) । संदेशरासक में एहु-एहु के अतिरिक्त 'इह' रूप भी मिलता है; इन सब का प्रयोग पुल्लिंग, स्त्रीलिंग, नपुं० तीनों में समान रूप से पाया जाता है [दे० संदेशरासक भूमिका ६ ५८ (ब)] । उक्तिव्यक्ति में इसकी पदांत प्राणध्वनि का लोप करने से 'ए' रूप मिलता है (दे० उक्तिव्यक्ति ५. जुअ-N. जुआ । महु-B. मधु । हुअ-C. धुअ । ६. मल-A. B. N. मलु । ७. लगो-A. B. लगौ, C. अगौ । जहीN. जही, C. धौँ । ८. रखो-A. O. रक्खो । तुमा-N. तुमां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001440
Book TitlePrakritpaingalam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBholashankar Vyas, Vasudev S Agarwal, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages690
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size18 MB
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