________________
१.१९९ ]
दप्पहि- दर्पेण करण कारक ए० व० । [ अथ हीरच्छन्दः ।
मात्रावृत्तम्
णाअ पभण तिणिण छगण अंत करहि जोहलं,
हार ठविअ पुणु वि सुपिअ विप्पगणहि सव्वलं । तिणि धरहि बे विकरहि अंत रगण लेक्खए,
कोइ जणइ दप्प भणड़ हीर सुकइ पेक्खए ॥ १९९॥
१९९. हीर छंद:
नागराज पिंगल कहते हैं कि जहाँ तीन षट्कल गण हो, अन्त में जोहल (रगण) को करो, हार (गुरु) स्थापित करके, फिर प्रिय विप्रगणों (सर्वलघु चतुर्मात्रिक गणों) से युक्त (करो); तीन धरो, फिर दो धरो (इस क्रम से ३२ हुए; 'अंकानां वामतो गति:' इस सिद्धान्त के अनुसार २३) अर्थात् जहाँ २३ मात्रा हो तथा अन्त में रगण दिखाई दे, यह हीर छंद है। इसे कौन जानता है, ऐसा (नागराज पिंगल) दर्प से कहते हैं ।
टिप्पणी-लक्खए, पेक्खए- आत्मनेपदी रूप, जो प्रा० पैं० की अवहट्ट में अपवाद रूप है ।
जणइ - ८ जानाति > जाणइ । यहाँ छंदोनिर्वाहार्थ 'आ' ध्वनि का ह्रस्वीकरण पाया जाता है।
दप्प - ८ दर्पेण, करण कारक ए० व० में प्रातिपदिक का प्रयोग |
Jain Education International
हार सुपिअ भण विप्पगण तीए भिण्ण सरीर ।
जोहल अंते संठवहु तेइस मत्तह हीर ॥ २००॥ [दोहा]
२००. हे प्रिय (शिष्य), पहले हार (गुरु) फिर विप्रगण (सर्वलघु चतुर्मात्रिक) को कहो ; इस तरह तीन बार प्रयोग करने से जो छंद अन्य छन्दों से भिन्न (भिन्न शरीरवाला) हो;- जिसके अन्त में रगण ( जोहल ) की स्थापना करो तथा तेइस मात्रा हों उसे हीर छन्द समझो (या वह हीर छंद है) ।
जहा,
[ ९३
धिक्कदलण थोंगदलण तक्क तरुण रिंगए,
ण णु कट दिंग दुकट रंग चल तुरंग ए । धूलि धवल हक्क सबल पक्खिपबल पत्तिए ।
कण्ण चलड़ कुम्म ललइ भुम्मि भरइ कित्तिए ॥ २०९ ॥ [हीर ]
२०१. युद्धभूमि में ये घोड़े धिक् धिक्, तक् तक्, शब्द करते, ण, ण, कट कट ध्वनि करते चल रहे हैं । पक्षियों के समान प्रबल बलवान् पदाति भी जो धूल में सने हैं - हक्क (वीर ध्वनि) कर रहे हैं। राजा कर्ण (कलचुरिनरेश कर्ण) युद्धयात्रा के लिए चलता है, तो कूर्म हिलने डोलने लगता है, और पृथ्वी कीर्ति से भर जाती है ।
टिप्पणी- थक्कदलण, थोंगदलण, तक्कतरुण, णंणणु कट, दिंग दुकट- ये सब अश्वगति की नादानुकृति है । कित्तिए - ८ कीर्त्या, करण कारक ए० व०; 'ए' म० भा० आ० में स्त्रीलिंग शब्दों के करण कारक ए० व० का विभक्ति चिह्न है । (दे० पिशेल ३८५; साथ ही दे० तगारे $ ९८ ए० पृ. १८३) ।
१९९. णाअ - B. N. णाअ, C. K. णाउ । तिण्णि - N. तिणि । करहि N. कराहि । पुणु वि - K. जंपु B. N. पुणवि, O जं पि । सव्वलं- N. सवलं । धरहि -0. करहि । करहि -0. धरहि । अंत नगण-मत्त पअहि । लक्खए - N. लक्खए। कोइA. N. कमण । सुकइ - B. सुकवि । २०० तीए - A. तिअ विध, B. तीहे । भिण्ण - O भिन्न । मत्तह - C. K. मत्तअ । २०१. दलण - O तरल । थोंगदलण - B. N. दरण । तरुण - B. तरण, C. N. तरुण, K. रिंगए - O. दिगए। दलण, O दरल । णं... दुकट - N. नं न इगट दिंग इगट, C. णं ण सकट द्रिगद्रकट । धवल -0. धउल । हक्क... ए-C. दर उपर णत्तिए । पखिखO. देक्खु । चलs - C. वलइ । भरइ -0. भरहि । भुम्मि -C. भुवण ।
For Private Personal Use Only
www.jainelibrary.org