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९०] प्राकृतपैंगलम्
[१.१९१ दह चारि दुक्कइ दहदु माणहु मत्त ठाइस पाअओ,
___ हरिगीअ छंद पसिद्ध जाणहु पिंगलेण पआसिओ ॥१९१॥ १९१. हरिगीता छंदः
प्रत्येक चरण में पहले चार पंचकलों (पंचमात्रिक गणों) की स्थापना करो, दूसरे स्थान पर षट्कल (दो), चरण के अंत में गुरु करो, (यह छंद) वर्णन से सुसबल (अत्यधिक समीचीन) (है)-दस, चार, दो, दस, दो इस तरह कुल मात्रा अट्ठाइस होती है। इस प्रसिद्ध छंद को हरिगीता जानो, इसे पिंगल ने प्रकाशित किया है।
टि०-ठविज्जसु-(< स्थापयेत), करिज्जसु (< कुर्यात); विधि प्रकार के म० पु० ब० व० रूप । ठाइस-2 अष्टाविंशति [दे० अठाइस (१.१६२)]; 'अठाइस' के पदादि 'अ' का लोप कर 'ठाइस' रूप बना है। पआसिओ-< प्रकाशितः ।
बीए छक्कलु ठावि कहु चारि पंचक्कल देहु ।
बारह उत्तर मत्त सउ माणसु अंग ठवेहु ॥१९२॥ १९२. दूसरे स्थान पर षट्कल कहो; चार पंचकल दो; (संपूर्ण छंद में) बारह उत्तर सौ (एक सौ बारह) मात्रा तथा अंत में गुरु (मानस) की स्थापना करो, (यह हरिगीता छंद है)।
टिo-ठावि र स्थाने: यही एक स्थान ऐसा कहा जा सकता है, जहाँ सानुनासिक 'व' की स्थिति मानी जा सकती है। इसे 'ठावि' (ठावें + इ, अधिकरण ए० व० का चिह्न) मानना होगा। राजस्थानी तथा व्रजभाषा में यह शब्द 'ठावं' के रूप में विद्यमान है। जहा, गअ गअहि ढुक्किअ तरणि लुक्किअ तुरअ तुरअहि जुज्झिआ,
रह रहहि मीलिअ धरणि पीडिअ अप्प पर णहि बुज्झिआ । बल मिलिअ आइअ पत्ति धाइउ कंप गिरिवरसीहरा,
उच्छलइ साअर दीण काअर वइर वड्डिअ दीहरा ॥१९३॥ [हरिगीता] १९३. उदाहरण :
कोई कवि युद्ध का वर्णन कर रहा है। हाथी हाथियों से भिड़ गये; (सेना के पैरों से उड़ी धूल से) सूर्य छिप गया; घोड़े घोड़ों से जूझ गये; रथ रथों से मिले, (सेना के भार से) पृथ्वी पीड़ित हुई; और अपने पराये का भान जाता रहा; दोनों सेनाएँ आकर मिलीं, पैदल दौड़ने लगे; पर्वतों के शिखर काँपते हैं, समुद्र उछलता है, कायर लोग दीन हो गये हैं ओर वैर अत्यधिक (दीर्घ) बढ़ गया है ।
टिप्पणी-गअहि, तुरअहि, रहहि-ये तीनों करण कारण ब० व० के रूप हैं ।
ढुक्किा-(ढौकिताः), लुक्किअ (आच्छन्नः, Vलुक्क देशी धातु), जुज्झिआ-(Vजुज्झ+इअ जुझिअ; दीर्धीकरण की प्रवृत्ति अथवा ब० व० का रूप) । १९१. पंचक्कल-A. C. पंचक्कल, B. पंचकलु । बीअ-A. विअ । ठामहि-N. ठाअहि । अंतहि-C. अन्तह । करिज्जसु-C. करज्जसु । सुसव्वलो-C. सुसद्धलो । दुक्इ-C. तक्कइ । दहदु-N दहहु । मत्त ठाइस-A.C. मत अठ्ठाईस ओ, N. मत्त अठइस । पाअओ-N. पाअ भो । जाणहु-C. माणहु, N. जागहुं । पिंगलेण-0. पिंगलेन । पआसिओ-A. पआसि; C. बखाणिओ, 0. पखाणिओ। १९२. बीए-B. बिअ ठाइ । छक्कलु-C. छक्कल । ठावि-A. एक्क, B. N. एक । पंचक्कल-B. पंचकलु । उत्तर0. उप्पर । माणसु-C. माणस । अंत ठवेहु-C. अंतह वेहु । १९३. ढुक्किअ-C. लुक्किअ। लुक्किअ-N. लुक्खिअ । जुज्झिआB. जुज्जि, N. जुड्डिआ, C. जुझ्झिआ । पीडिअ-C. K. पीलिअ । मिलिअ-B. भिलिअ । आइअ-A. B. आएउ । धाइज N. धाइउ, A. धाएउ, B. धावउ । C. K. जाइउ । कंप-N. कंपि । उच्छलइ-C. उछलइ, A. उच्चलिअ, N. उच्छरइ । दीणB. दिण, N. दीण्ण । वइस्-A. वैर, B. वैरि । वड्डिअ-B. वडिअ, C. वढुिअ, K. बट्ठिअ । दीहरा-A. दीहरो । १९३-C. १८९.
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