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प्रथम अध्ययन का पुनः सम्पादन
[१२]
प्रस्तावना
जो हमारे द्वारा बदले गये पाठ का पूर्ण रूप से या आंशिक रूप में समर्थन करते हो ।
I
11. म. जै. वि. के आचारांग का जो शब्द ( या शब्दरूप) एक बार बदलकर उसके स्थान पर जो प्राचीन शब्द या रूप स्वीकार किया गया है उसके पुनः आगमन पर उसके समर्थन में फिर से प्राचीन पाठ पाद-टिप्पणों में नहीं दिये गये हैं 12. अपवाद के रूप में जिस शब्द का प्राचीन रूप कहीं पर भी किसी भी प्राचीन आगम ग्रंथ में या चूर्णी में या अन्य प्राचीन आनुषंगिक ग्रंथ में नहीं मिलता हो तो उसे नहीं बदला गया है, जैसे- मोयन (मोचन ) ।
13. हमारे द्वारा स्वीकृत पाठ का अन्यत्र कहीं पर भी आगमों या आगमों की टीकाओं में समर्थन मिलता है तो उस पाठ को लेने का आग्रह रखा गया है।
के. आर. चन्द्र
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