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________________ प्रथम अध्ययन का पुनः सम्पादन [२१९] संस्करणों के पाठों की तुलना प्रा. पुढविकम्मसमारम्भा परिन्नाता भवन्ति स हु मुनी शु. पुढवि-कम्म-समारम्भा परिन्नाया भवन्ति, से हु मुणी आ. पुंढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी जै. पुढवि-कम्म-समारंभा परिण्णाता भवंति से म. पुढविकम्मसमारंभा परिण्णाता भवंति से हु मुणी _chche मुणी । प्रा. परिन्नातकम्मे त्ति बेमि । शु. परिनाय-कम्मे- त्ति बेमि । आ. परिण्णातकम्मेत्ति बेमि (१७) जै. परिण्णात-कम्मे ।-त्ति बेमि । म. परिण्णायकम्मे त्ति बेमि । ततीये उद्देसगे प्रा. १९. से बेमि- से अधा वि अनगारे उज्जुकडे नियागपडिवन्ने शु. से बेमि : से जहा वि अणगारे उज्जुकडे नियाग-पडिवन्ने से बेमि - जहा - अणगारे उज्जुकडे नियायपडिवण्णे जै. ३५. से बेमि- से जहावि – अणगारे उज्जुकडे, णियागपडिवण्णे, म. १९. से बेमि- से जहा वि अणगारे उज्जुकडे णियागपडिवण्णे प्रा. अमायं कुव्वमाणे वियक्खाते । २०. जाए सद्धाए निक्खन्तो शु. अमायं कुव्वमाणे वियाहिए । जाए सद्धाए निक्खन्तो, आ. अमायं कुव्वमाणे वियाहिए(१८) जाए सद्धाए निक्खंतो जै. अमायं कुव्वमाणे वियाहिए ॥ ३६. जाए सद्धाए णिक्खंतो, म. अमायं कुव्वमाणे वियाहिते । २०. जाए सद्धाए णिक्खंतो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001438
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages364
LanguagePrakrit, Gujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Research
File Size14 MB
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