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________________ अर्धमागधी का मूल स्वरूप निर्णीत करने का स्तुत्य प्रयास भगवान महावीर ने अपना उपदेश अर्धमागधी भाषा में दिया थायह बात भगवतीसूत्र से सुप्रसिद्ध है । अतएव डॉ. चन्द्रा जो अर्धमागधी की खोज में व्यस्त हैं, उनका ध्यान आचारांग के प्रथम श्रुतस्कंध की ओर जाय यह स्वाभाविक है। उन्होंने आचारांग के प्रथम अध्ययन को अर्धमागधी भाषा में रूपान्तरित करने का जो प्रयत्न किया है वह प्रशंसनीय है । उसे देखने का सुअवसर मुझे मिला है यह मेरा सद्भाग्य है और अध्ययन करने के बाद यह अब मैं कह सकता हूँ कि डॉ. चन्द्रा ने जो किया है वह वे ही कर सकते हैं क्योंकि उनका ध्यान वर्षों से इस ओर है कि वास्तविक दृष्टि से अर्धमागधी भाषा का क्या स्वरूप हो । यह कार्य सरल नहीं है किन्तु डो. चन्द्रा ने अर्धमागधी भाषा के स्वरूप के विषय में अध्ययन किया है और अब उनके समक्ष उसका स्वरूप स्पष्ट हुआ है। अतएव वे इस बात को स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि अर्धमागधी भाषा का स्वरूप ऐसा है। आचारांग को लेकर उन्होंने जो कार्य किया है वह अपूर्व है और इसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं । जैन आगमों की भाषा दुर्भाग्य से मात्र अर्धमागधी न रहकर महाराष्ट्री से बहुत प्रभावित हो गयी है। अतः आगमों की मूलभाषा के विषय में संशोधन हो यह प्रशंसनीय ही होगा और यह कार्य डो. चन्द्रा कर रहे हैं अतएव वे धन्यवाद के पात्र हैं यह निःसन्देह है। अहमदाबाद ११-८-९६ -पं. दलसुख मालवणिया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001438
Book TitleAgam 01 Ang 01 Acharanga Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra, Dalsukh Malvania
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages364
LanguagePrakrit, Gujarati, Hindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Research
File Size14 MB
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