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IX
व्याकरणों में दिये गये हैं उनमें से कौन से प्राचीन और कौन से परवर्ती काल के हैं और अर्धमागधी जैसी प्राचीन प्राकृत भाषा के लिए कौन से प्रत्यय उपयुक्त माने जाने चाहिए ।
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प्राचीन शब्द-रूपों की शोध के संबंध में एक और कार्य किया गया। प्राचीन माने जाने वाले आगम ग्रंथों में से प्राचीन शब्द रूपों का चयन करके (उनके कार्ड बनाकर ) उनको अकारादिक्रम से जमाया गया जिससे इस सम्पादन में उनका यथास्थान उपयोग किया जा सकें । इस कार्य के लिए जिन ग्रंथों का चयन किया गया वे इस प्रकार हैं। श्री महावीर जैन विद्यालय, बम्बई द्वारा प्रकाशित आचारांग, सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन और दशवैकालिक तथा ला. द. भा. सं. विद्यामंदिर, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित इसिभासियाई (ऋषिभाषितानि) । कहने का तात्पर्य यह है कि इस संपादन में जहाँ तक हो सके सभी तरह से प्राचीन शब्द-रूपों को ग्रहण करने का प्रयत्न किया गया है ।
इस सम्पादन कार्य को प्रारंभ करने और उसे सम्पन्न करने में पं. श्री दलसुखभाई मालवणिया और डो. ह. चू. भायाणी का जो मार्गदर्शन और सहयोग रहा है तथा उन्होंने जो प्रोत्साहन दिया है उसके लिए मैं उनका हृदयपूर्वक आभार मानता हूँ ।
इस ग्रंथ को तैयार करने में कुमारी शोभना आर. शाह लगातार मेरी सहायता करती रही है । अतः उसका भी आभार मानता हूँ। इसके अतिरिक्त अन्य विद्यार्थिनियों प्रीति मेहता, जागृति पंड्या, गीता महेता, अरुणा भट्ट, आदि, आदि ने प्राचीन आगम ग्रंथों, पालि भाषा और अशोक के शिलालेखों के शब्दों के कार्ड तैयार करके जो सहयोग किया है उस कार्य के लिए उनका भी आभार मानता हूँ ।
इस ग्रंथ को तैयार करते समय अन्य विद्वानों और मुनि महाराजों ने भी जो उपयोगी सलाह दी हैं उनका भी मैं अभारी हूँ ।
इसमें जिन जिन मुद्रित संस्करणों का उपयोग किया गया है उनके संपादकों एवं जिन जिन हस्तप्रतों का उपयोग किया गया है उन ज्ञानभंडारों एवं संस्थाओं का आभार मानता हूँ । विशेष करके ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामंदिर का और उसके संचालकों का तो अत्यन्त अभारी हूँ क्योंकि उस
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