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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी
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है, अतः -णि प्रत्यय पुराना है और -इ, -ई उत्तरवर्ती हैं। हेमचन्द्राचार्य ने तीन -णि, -ई और -इँ प्रत्यय दिये हैं ।
जस्-शस इ-ई-णयः समाग्दीर्घाः –8.3.26, उदाहरण-वयमाई, 'पङ्कयाइ', दहीई, मइ, पङ्कयाणि, दहीणि, मणि
__ सूत्र नं. 8.1 34 के उदाहरण इस प्रकार हैंगुणाई, गुणाई और देवाणि
अर्थात् उनके अनुसार प्राकृत में तीनों प्रत्यय – णि, इं और इ चलते हैं । २. पुंलिंग-नपुसकलिंग अकारान्त तृ. ए. व.
पुं. तृ. ए. व. का विभक्ति-प्रत्यय प्राकृत-प्रकाश के अनुसार .-एण मात्र है, उदाहरण -वच्छेण
टामोर्ण: 5.4 परतु कॉवेल महोदय के सूत्र 4.16 . पर के टिप्पण के अनुसार –एण का -एणं भी होता है ।
____ आचार्य श्री हेमचन्द्र ने -एण और -एणं दोनों प्रत्ययों का उल्लेख किया हैं।
टा-आमोर्णः 8 3 6 और क्त्वा-स्यादेर्णः स्वोर्वा 8 1 27 ... उदाहरण-वच्छेणं, वच्छेण
वररुचि सिर्फ -एण प्रत्यय दे रहे हैं जबकि हेमचन्द्र -एण और -एणं दोनों प्रत्ययों का उल्लेख करते हैं । ३. वतीया बहुवचन
प्राकृत-प्रकाश में तृ. ब. व. के लिए मात्र -हिं प्रत्यय का उल्लेख है।
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