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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अधमागधी ८७ विभक्ति प्रत्यय और क्रिया प्रत्यय साहित्य में से लुप्त हो जाने की शंका होती है । जैसे आ० श्री हेमचन्द्र ने पंचमी एकवचन के लिए (स्मात् ) -म्हा विभक्ति प्रत्यय के साथ कम्हा, जम्हा, तम्हा इत्यादि रूप तो (८.३.६६). दिये हैं परन्तु (-स्मिन् ) -म्हि विभक्ति प्रत्यय का कोई उल्लेख तक नहीं किया है जो साहित्य में यत्र तत्र मिलता है । हो सकता है इसे पालि का विभक्ति प्रत्यय समझकर मान्य नहीं रखा हो । जब व्याकरण-ग्रंथ में उसे मान्यता नहीं मिली हो तब तो ऐसे विभक्ति प्रत्यय का प्रयोग प्राचीन प्रतों में कहीं कहीं पर मिला भी होगा तो उसका सामान्यत: त्याग ही कर दिया गया होगा ऐसा कहना अनुपयुक्त नहीं होगा ।
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