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परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी
शुबिग महोदय की पद्धति ज्ञ के विषय में कितनी उचित है यह ऊपर किये गये अध्ययन के निम्न उपसंहार से स्पष्ट हो जायगा । अर्द्धमागधी आगमनथों के अमुक अध्ययनों के सम्पादन में प्रो. आल्सडर्फ ने भी यही पद्धति अपनायी है । उपसंहार :
प्राचीन काल में (अशोक के समय में) पूर्वीक्षेत्र में ज्ञ - न्न, पश्चिम में = ञ और उत्तर-पश्चिम और दक्षिण में = bण का प्रचलन था । उत्तरवर्ती काल में ण्ण' का प्रचलन व्यापक होने लगा और यह प्रवृत्ति पहले पश्चिम (प्रथम-द्वितीय शताब्दी) में, तत्पश्चात् दक्षिण (द्वितीय-तृतीय शताब्दी) में और उसके बाद मध्यक्षेत्र (चौथी शताब्दी में फैली जो उत्तरवर्ती काल में न का ण बनाने की प्रवृत्ति से प्रभावित हुई है और इससे स्पष्ट है कि प्राचीन अर्धमागधी ग्रन्थों में ज्ञ = न्न (प्रारम्भ में न) का प्रयोग ही ऐतिहासिक दृष्टि से सर्वथा योग्य
और सही है जिसे शुबिंग महोदय और आल्सडर्फ महोदय ने अपनाया है । ..... आचार्य श्री हेमचन्द्र ने आर्ष के उदाहरण देते समय जो उद्धरण प्रस्तुत किये हैं उनमें से एक उद्धरण ८.२.१०४ में-'हयं नाणं किया-हीणं' मिलता है । क्या ज्ञ के लिए न का यह प्रयोग सम्पादकों के लिए एक विश्वसनीय प्रमाण नहीं है ?
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