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के. आर चन्द्र . :
बाद में किया गया परिवर्तन है-लोप है-उत्तरकालीन व्याकरणकारों का प्रभाव है, चाल भाषा का प्रभाव है ऐसा असंदिग्ध रूप से प्रमाणित हो रहा है । मूल भाषा बदली गयी है यह तथ्य दपर्ण की तरह स्पष्ट हो रहा है । यह तो पाँचवीं-छठी शताब्दी में रचे गये एक ग्रन्थ की कहानी है तब फिर प्राचीन आगम-ग्रन्थों की अर्धमागधी भाषा के साथ १५०० वर्षों में कितना क्या कुछ नहीं हुआ होगा यह उपलब्ध हो रहे विभिन्न पाठान्तरों के द्वारा सरलता से जाना जा सकता है । उनके साथ भी ऐसा ही हुआ है और अभी तक के संस्करणों में मध्यवर्ती व्यञ्जनों के लोप को जो महत्व दिया है वह 'उपयुक्त नहीं है और भाषा की एकरूपता के नाम से (ध्वनिपरिवर्तन की दृष्टि से मध्यवर्ती अल्पप्राण व्यञ्जनों का लोप
और महाप्राण व्यजनों का 'ह' में परिवर्तन) एक कृत्रिम सिद्धांत खडा किया गया है इसलिए वह अनुपयुक्त बन जाता है । अतः अभी तक अर्धमागधी प्राचीन ग्रन्थों के सम्पादन में जो पद्धति अपनायी गयी है वह उचित है या उसे बदलने-सुधारने की आवश्यकता है इस विषय पर प्राकृत और अर्धमागधी के अनुभवी विद्वान और संपादक पुन: विचार करे यही निवेदन है ।
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