SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२८ के. आर. चन्द्र सूत्रकृतांग जे मातरं च पितरं च जे मातरं च पियरं च 1.7.403 1.4.1.247 आतगुत्ता जिइंदिया 1.8.431 ! विरते आयगुत्ते 1.7.400 जे य पडुप्पन्ना 2.2.707 जे य पडुप्पण्णा 2.1.680 ऋषिभाषितानि पंचवणीमकसुद्ध...भिक्खं 12.2 पंचवणीमगसुद्धं भिक्ख 41.15 गंभीरं सव्वतोभदं 45.30 गंभीरं सव्वओभई 933 पुप्फघाते हतं फलं 25.1 पुष्फघाए जहाफलं 15-6 कम्ममूलमनिव्वाणं 9.1 मोहमूलमणिव्वाणं 2.7 फलघाती न सिंचति 15.7 फलघाती ण सिंचती 2.6 गावो चरन्ती इह 41.16 गाओ चरन्ती इह 12.1 सिद्धे भवति णीरए(ये) 1.3;29.19 सिद्धो भवति णीरओ 9.21 मोहमूलाणि दुक्खाणि 2.7 कम्ममूलाई दुक्खाई 9.1 पावमूलाणि दुक्खाणि 15.1 प्राचीन माने जानेवाले विभिन्न ग्रन्थों में एक समान शब्दरूपों में पाठ-भेद (प्राचीन और उत्तरवर्ती) (i) उत्तरवर्ती ग्रन्थों में प्राचीन पाठ और प्राचीन ग्रन्थों में उत्तरवर्ती पाठ प्राचीन पाठ | उतरवर्ती पाठ एस धम्मे धुवे णितिए सासते एस धम्मे सुद्धे णितिए सासए समेच्च लोग खेतन्नेहिं पवेदिते समेच्च लोयं खेतण्णेहिं पवेदिते -सूत्रकृ. 2.1.680 --आचा. 1.4.4.132 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy