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________________ १०७. परम्परागत प्राकृत व्याकरण की समीक्षा और अर्धमागधी उचराध्ययन (ii) अत्थजुत्ताई 1.3 (अट्ठजुत्ताणि सं २, पु, ला १, २), पावाई कम्माइ' 12.40 (पावाणि कम्माणि ह.), भीमाणि 19.47. (भीमाइ सं १ ), कम्माणि महालयाणि 13.26 कमाई महालयाई सं २, पु, ला १, शा.) (ii) कुसग्गेण 9.44 (कुसग्गेणं पु. ला १, २, ह, पा, ने) कोहेणं 9.54 (कोहेण सं १), वद्धमाणेणं 23-12,23 (वद्धमाणेण सं १) (iii) अणेगाणं 23-35 (अणेगाण सं २, ह, शा, पा, ने) (iv) अगारेसु 1.26 (अगारेसु पु. ला १, २, पा.) तसेसु 1990 (तसेसुं ला १, २) मात्रा-नियमन के लिए अनुस्वार का आगम या लोप (अनुष्टुप् छन्द्र में) आवश्यक सूत्रकृतांग जेहि नारीण संजोगा 1 3 4.17 ऋषिभाषितानि भोयणं भिज्जएहि वा 45.52 ततो कम्माण संतती 2.5 विसपुप्फाण छड्डणं 9.17. आताकडाम कम्माणं 15.17;45.10, दवहीणाण लाघवो 22.5, मोही मोहीण मज्झम्मि 24.35, एयं बुद्धाण सासणं 38.4, लोए जीवाण दिज्जती 4517 उत्तराध्ययन नाणेण दंसणेणं च, चरित्तेण तवेण य 22.26, तत्थ चिंता समुप्पन्ना, गुणवंताण ताइणं 23 10, सारीरमाणसे दुक्खे, (च) टीका ग्रंथों के लिए संकेत चु चर्णि सी. शीलांकाचार्य की वृत्ति (छ) आगमो. आगमोदय संस्करण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001436
Book TitleParamparagat Prakrit Vyakarana ki Samiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1995
Total Pages162
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size7 MB
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