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________________ आचार्य श्री हेमचन्द्र के प्राकृत व्याकरण की अर्धमागधी भाषा 11. ब्रू धातु के रूप :अबवी (अब्रवीत् ) भूतकाल के -सी, -ही, -हीअ प्रत्यय देते समय वृत्ति में आर्ष के लिए 'अब्बवी' रूप दिया है -आर्षे देविन्दो इणमब्बवी ( 8.3.162 की वृत्ति) । वर्त. काल के बेमि (बबीमि) का उदाहरण स्वराणां स्वराः (8.4.238) के सूत्र की वृत्ति में दिया गया है (आर्षे बेमि) । ये दोनों रूप अति प्राचीन हैं और प्राचीनतम प्राकृत साहित्य में ही प्रायः मिलते हैं10 । परवर्ती प्राकृत साहित्य में ऐसे रूप नहीं मिलेगे । प्राचीन पालि में भी ऐसे ही प्रयोग मिलते हैं । 12. सूत्र नं. 8.1.206 में (क. भू. कृदन्त प्रत्यय) -त का -ड होना समझाते समय वृत्ति में कहा गया है आर्षे कृत का कड. हो जाता है, दुक्कडं, सुकडं, आहडं, अवहडं । यह प्रवृत्ति भी अशोक कालीन शिलालेखों में मिलती हैकृत = कट । इसी ट का बाद में घोष होकर ड बन गया है। 13. संबंधक भूतकृदन्त के उदाहरण देते समय सूत्र नं.. 8.2.146 की वृत्ति में कहा गया है कटु इति तु आर्षे, अर्थात् -ट्टु प्रत्यय । यह विशेषता अशोक कालीन पूर्वी क्षेत्र की है। अन्य क्षेत्रों में 'तु' प्रत्यय मिलता है । इन सभी विशेषताओं को सूत्रबद्ध करके क्या अन्य प्राकृतों की तरह उन्हें एक जगह व्यवस्थित नहीं रखा जा सकता था जबकि 10. Ibid. 515 11. Geiger : Pali Literature and Language, No 159 IV... Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001435
Book TitlePrachin Ardhamagadhi ki Khoj me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Jain Vidya Vikas Fund Ahmedabad
Publication Year1991
Total Pages136
LanguagePrakrit, Sanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Grammar
File Size6 MB
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